पुणे: महाराष्ट्र राज्य सहकारी चीनी मिल संघ ने चीनी मिलों के पेराई दिनों को 150 दिनों से आगे बढ़ाने का निर्णय लिया है। इसके लिए संघ ने अब आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) आधारित गन्ने की खेती के लिए राज्य स्तरीय अभियान शुरू किया है। चीनी एसोसिएशन के अध्यक्ष पी.आर.पाटिल ने कहा कि, राज्य का पेराई सत्र औसतन मात्र 83 दिन का रह गया है। चीनी उद्योग के अर्थशास्त्र के अनुसार, पेराई का समय कम से कम 150 दिन होना चाहिए। इस वर्ष पेराई के दिन कम होने से सभी मिलों को घाटा हुआ है। दूसरी ओर, एफआरपी उपलब्ध कराने का मुद्दा उठ खड़ा हुआ है। केवल एआई में ही इस दुष्चक्र को तोड़ने की शक्ति है। वर्तमान गन्ना खेती की तकनीक पुरानी हो जाने के कारण उत्पादकता में गिरावट आई है। इसलिए संघ ने पेराई अवधि को कम से कम 165 दिन तक बढ़ाने का संकल्प लिया है। राज्य सहकारी चीनी मिल संघ ने कारखानों से एआई तकनीक को शीघ्र अपनाने का आग्रह किया है।
इस बीच, चीनी मिलों को एआई तकनीक से परिचित कराने के लिए क्षेत्र का दौरा करके एआई के बारे में व्यावहारिक परिचय और जानकारी दी जा रही है। इस उद्देश्य के लिए हाल ही में तीन दिवसीय वर्कशॉप आयोजित किया गया था। बारामती कृषि विज्ञान केंद्र में आयोजित इस पहल के पहले चरण में चयनित जिलों के 42 चीनी मिलों के अध्यक्ष, उपाध्यक्ष और निदेशकों सहित 140 प्रतिनिधियों और कार्यकारी निदेशकों सहित प्रशासन के 215 अधिकारियों ने भाग लिया। दिलचस्प बात यह है कि इस पहल में 533 गन्ना किसान भी शामिल थे। दूसरे चरण में शेष जिलों के लिए 13 व 14 मई को प्रशिक्षण आयोजित किया जाएगा। चीनी संघ ने कहा कि अहिल्यानगर, धाराशिव, नासिक, छत्रपति संभाजीनगर, जालना, बीड, हिंगोली, नांदेड़ और लातूर की मिलें इसमें भाग ले रही हैं।
कृत्रिम बुद्धि से गन्ने का उत्पादन 40 प्रतिशत तक बढ़ सकता है…
चीनी संघ के अनुसार, राज्य में वर्तमान में 13.73 लाख हेक्टेयर में गन्ने की खेती की जाती है। हालांकि, पेराई में गिरावट के कारण महाराष्ट्र उत्पादन में पिछड़ गया है और उत्तर प्रदेश आगे निकल गया है। यदि पहले चरण में राज्य में कम से कम छह लाख हेक्टेयर गन्ना क्षेत्र एआई के अंतर्गत आ जाता है, तो राज्य पुनः अग्रणी हो जाएगा। यह सिद्ध हो चुका है कि एआई प्रौद्योगिकी के उपयोग से गन्ने का उत्पादन 40 प्रतिशत तक बढ़ जाता है और बड़ी मात्रा में उर्वरक और पानी की बचत भी होती है। चीनी मिलों द्वारा इस तकनीक को पूरे प्रदेश के किसानों तक पहुंचाने की पहल कारगर हो सकती है।