कोल्हापुर: 2024-25 में गन्ना पेराई सत्र छोटा होने से महाराष्ट्र के चीनी उत्पादन में पिछले वर्ष की तुलना में 29 लाख टन की भारी गिरावट आई है। पुणे में चीनी आयुक्तालय कार्यालय के अनुसार, 15 नवंबर को शुरू हुए सत्र में 200 चीनी मिलें चालू थीं। इन मिलों ने सामूहिक रूप से 81 लाख टन चीनी का उत्पादन किया, और यह उत्पादन 2023-24 सत्र में उत्पादित 110 लाख टन से लगभग 29 लाख टन कम है।पिछले सीजन में 208 मिलों ने पेराई में हिस्सा लिया था। 2024-25 में 200 मिलों द्वारा पेराई किया कुल गन्ना 850 लाख टन थी, जो पिछले सत्र में पेराई किये गए 1,070 लाख टन गन्ने से कम था।इसके अलावा, औसत चीनी रिकवरी दर भी 10.27% से घटकर 9.5% हो गई।
इस साल पेराई सत्र की अवधि काफी कम रही, जिसमें मिलें अधिकतम 90 दिनों तक ही चल पाईं, जो पिछले वर्षों में देखे गए 130-150 दिनों के औसत से काफी कम है। पेराई गतिविधियों का समापन महीनों में अलग-अलग हुआ: जनवरी में 11 मिलें, फरवरी में 95, मार्च में 89, अप्रैल में 4 और मई में एक मिल ने पेराई पूरी की।सत्र के अंत की आधिकारिक घोषणा 14 मई को की गई। चीनी उद्योग विशेषज्ञ विजय औताडे ने ‘टीओआई’ से बोलते समय इस छोटे सत्र और कम रिकवरी के वित्तीय प्रभावों पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा, औसत पेराई दिनों में गिरावट, जो कि अब तक के सबसे कम रिकॉर्ड में से एक है, चीनी मिलों की वित्तीय स्थिरता के लिए जोखिम पैदा करती है।
उन्होंने कहा, पेराई में गिरावट के कारण मिलों को पिछले वर्ष की तुलना में 10,700 करोड़ रुपये का अनुमानित घाटा हुआ, जबकि कम चीनी रिकवरी दर ने 2,960 करोड़ रुपये का अतिरिक्त घाटा दिया। कम लाभप्रदता के कारण बहुत कम मिलें किसानों को उनके गन्ने के लिए उचित और लाभकारी मूल्य (एफआरपी) का भुगतान करने की स्थिति में हैं।विशेषज्ञ और मिल मालिक अब मांग कर रहे हैं कि चीनी का न्यूनतम समर्थन मूल्य बढ़ाकर 42 रुपये प्रति किलोग्राम किया जाना चाहिए, साथ ही एथेनॉल खरीद दरों में भी इतनी ही वृद्धि की जानी चाहिए। हाल ही में केंद्र ने एक बार फिर एफआरपी में बढ़ोतरी की है, जबकि पिछले पांच सालों से एमएसपी में कोई बदलाव नहीं किया गया है। औताडे ने कहा, मिल मालिक ऋणों के पुनर्गठन और मशीनरी के रखरखाव की लागत को पूरा करने के लिए अतिरिक्त धन की भी मांग करेंगे।