अमेरिका को चीनी निर्यात पर 30% टैरिफ: दक्षिण अफ्रीका के गन्ना उत्पादकों को चीनी उद्योग खतरे में पड़ने का डर

केप टाउन : दक्षिण अफ्रीका के गन्ना उत्पादकों ने अमेरिका द्वारा चीनी निर्यात पर लागू 30% के नए टैरिफ को लेकर गहरी चिंता व्यक्त की है।नया टैरिफ 1 अगस्त से लागू होने वाला है। उद्योग के नेताओं को डर है कि, यह दंडात्मक टैरिफ दक्षिण अफ्रीका की चीनी को उसके सबसे महत्वपूर्ण बाजारों में से एक में अप्रतिस्पर्धी बना देगा और चीनी आपूर्ति श्रृंखला पर निर्भर लाखों लोगों की आजीविका को खतरे में डाल देगा।

दक्षिण अफ्रीका के गन्ना उत्पादक संघ के अध्यक्ष हिगिंस मदलुली ने कहा कि, दक्षिण अफ्रीकी चीनी उद्योग अमेरिकी बाजार के लिए कोई खतरा नहीं है, जो स्थानीय मांग को पूरा करने के लिए अमेरिका के बाहर से आने वाली चीनी पर निर्भर है। अमेरिका में हाल ही तक एक कोटा प्रणाली लागू थी ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि आयातित चीनी की मात्रा और कीमत, दोनों पर उसका पूर्ण नियंत्रण बना रहे। अमेरिका लंबे समय से अपनी घरेलू माँग को पूरा करने के लिए आयात पर निर्भर रहा है, जबकि पिछली कोटा प्रणाली आयातित चीनी की मात्रा और कीमत पर कड़ा नियंत्रण सुनिश्चित करती थी।

ब्राज़ील, भारत और मेक्सिको जैसे प्रतिस्पर्धियों को दी जाने वाली व्यापक सब्सिडी के कारण, दक्षिण अफ़्रीकी उत्पादक इस महत्वपूर्ण बाज़ार से लगातार बाहर होते जा रहे हैं। मदलुली ने कहा कि, 30% टैरिफ स्थानीय किसानों के लिए विशेष रूप से चिंताजनक है क्योंकि यह ब्राज़ील, भारत और मेक्सिको जैसे भारी सब्सिडी वाले प्रतिस्पर्धियों की तुलना में दक्षिण अफ़्रीकी चीनी को अमेरिकी बाजार में कम प्रतिस्पर्धी बना देगा। उन्होंने कहा, अमेरिकी बाज़ार में प्रतिस्पर्धात्मकता का नुकसान उसी समय हो रहा है जब दक्षिण अफ़्रीकी गन्ना उत्पादक हमारे बंदरगाहों में आने वाले सस्ते, सब्सिडी वाले आयातों के दबाव में है।

हालांकि, दक्षिण अफ़्रीकी सरकार स्थानीय चीनी बाजार को अनुचित व्यापार प्रथाओं से बचाने में मदद करने की स्थिति में है।हाल के आंकड़ों से विदेशी चीनी आयात में भारी वृद्धि का पता चलता है, दक्षिणी अफ्रीकी सीमा शुल्क संघ (SACU) के बाहर के देशों से चीनी आयात 2023/24 के 25,000 टन से चार गुना बढ़कर एक साल बाद 1,00,000 टन से अधिक हो गया है। मदलुली ने कहा कि, यह प्रवृत्ति जारी रहने का खतरा है, और अनुमान 2025/26 सीज़न के लिए और भी अधिक आयात का संकेत दे रहे हैं। उन्होंने कहा कि, आयातित चीनी की तेज़ी से बढ़ती बाजार हिस्सेदारी ने दक्षिण अफ्रीकी गन्ना उत्पादकों की व्यवहार्यता पर चिंताएँ बढ़ा दी हैं।

दक्षिण अफ़्रीकी गन्ना उत्पादक हमारे बंदरगाहों पर रोजाना आने वाले इन अनुचित रूप से सब्सिडी वाले आयातों का मुकाबला नहीं कर सकते, खासकर जब उद्योग को कई अन्य दबावों का सामना करना पड़ता है, जिनमें अनियमित मौसम, मिलों का बंद होना, स्वास्थ्य संवर्धन शुल्क (चीनी कर) और 30% टैरिफ शामिल है। स्थानीय बाज़ार में आने वाली प्रत्येक टन आयातित चीनी पर उद्योग को 6,000 रैंड का नुकसान होता है।

दक्षिण अफ़्रीकी किसान विकास संघ के अध्यक्ष डॉ. सियाबोंगा मदलाला ने कहा कि वे एक प्रमुख व्यापारिक साझेदार के रूप में दक्षिण अफ़्रीका और अमेरिका के बीच बिगड़ते व्यापारिक संबंधों को लेकर बहुत चिंतित हैं।दक्षिण अफ़्रीका अमेरिकी बाज़ार में चीनी का निर्यात करता है, जहाँ उसे प्रीमियम कीमतें मिलती हैं। मदलाला ने कहा, पारस्परिक टैरिफ में वृद्धि से अमेरिका के साथ व्यापार के लाभ कम हो जाएंगे, किसानों के लिए गन्ने की कीमतें कम हो जाएंगी और उनकी आजीविका को खतरा होगा।

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