राष्ट्रीय शर्करा संस्थान, कानपुर द्वारा “राष्ट्रीय प्रदूषण नियंत्रण दिवस ” पर एक वेबिनार का आयोजन किया गया जिसमे चीनी एवं अल्कोहल उद्योग के तकनीकविदों, एवं संस्थान के छात्रों के अतिरिक्त विभिन्न विश्वविद्यालयों एवं संस्थानों द्वारा भाग लिया गया। वेबिनार मे कृषि, म्युनिसिपल एवं इंडस्ट्रियल वेस्ट की मात्रा, उसके नियंत्रण तथा निस्तारण पर चर्चा की गयी।
अपने व्याख्यान मे राष्ट्रीय शर्करा संस्थान के निदेशक श्री नरेंद्र मोहन ने चीनी एवं अल्कोहल उद्योग से उत्सर्जन एवं उनके नियंत्रण हेतु प्रोसेसिंग के दौरान “उपलब्ध उन्नत तकनीकों ” को अपनाने पर जोर दिया। पराली से हो रहे वायु प्रदूषण का वर्णन करते हुए उन्होंने कहा की गन्ने मे उपलब्ध कुल ऊर्जा का लगभग 65% ही उपयोग मे लाया जाता है तथा शेष 35% जो पत्तियों, टॉप एवं जड़ों इत्यादि मे होता है उसका उपयोग नहीं होता और इनको जलाया भी जाता है । प्रदूषण नियंत्रण हेतु इसका 50% कम्पोस्टिंग के लिए प्रयोग कर जहाँ मिटटी की उर्वरा शक्ति बढ़ायी जा सकती है वहीँ शेष का उपयोग ईंधन के रूप मे करके 1500 मेगावाट अतिरिक्त पावर का उत्पादन किया जा सकता है। इसी प्रकार डिस्टिलरीज मे लगे इन्सीनरेशन बायलर की राख का उपयोग पोटाश समृद्ध उर्वरक बनाने मे कर जहाँ प्रति वर्ष 11.7लाख टन पोटाश का आयात काम किया जा सकता है और साथी ही राख के कारण प्रदूषण को भी दूर किया जा सकता है।
इस अवसर पर CSJM यूनिवर्सिटी, कानपुर की सहायक आचार्या, डा द्रौपती यादव ने वायु प्रदूषण के विभिन्न कारणों एवं उनके नियंत्रण पर चर्चा करते हुए उनके मानव जीवन पर प्रभाव के बारे मे प्रेजेंटेशन दिया। क्राइस्ट चर्च कॉलेज, कानपुर की डा मीत कमल द्विवेदी ने “ग्रीन लैब”, “ग्रीन केमिस्ट्री” तथा “ग्रीन एनर्जी” पर चर्चा करते हुए उनके द्वारा पर्यावरणीय संतुलन को बनाये रखने हेतु विस्तार से बताया गया। संस्थान के प्रो डी स्वाइन ने कार्यक्रम का सञ्चालन करते हुए उद्योगों मे एफ्लुएंट को नियंत्रित करने एवं ताजे पानी की खपत को कम करने के बारे मे बताया।