वाराणसी : आईआईटी बीएचयू के वैज्ञानिकों ने बड़ी सफलता हासिल की है। उन्होंने गन्ने की खोई और नाले के बैक्टीरिया से हाइड्रोजन तैयार करने में सफलता पाई है। अमर उजाला में प्रकाशित खबर के अनुसार, ये काम ग्रीन टेक्नोलॉजी प्रक्रिया के तहत संस्थान के स्कूल ऑफ बायोकेमिकल इंजीनियरिंग की बायो मॉलिक्यूलर इंजीनियरिंग प्रयोगशाला में हुआ है। इस अध्ययन में एक बैक्टीरिया बायोपॉलिमर को भी मिलाया गया है। इसमें इतनी क्षमता होती है कि ये गन्ने की खोई (बैगास) को प्रभावी रूप से हाइड्रोजन गैस में बदल देता है।
इसकी ये कार्यक्षमता इसे बायोमास वेस्ट से नवीकरणीय ऊर्जा उत्पादन के लिए एक जैव प्रेरक बनाती है। यह अध्ययन प्रतिष्ठित अंतरराष्ट्रीय जर्नल ऑफ हाइड्रोजन एनर्जी एंड फ्यूल में प्रकाशित किया गया है। इसके बाद अब इस रिसर्च के लिए एक पेटेंट आवेदन भी दायर कर दिया गया है। इस बैक्टीरिया को एल्केलिजींस अमोनियॉक्सीडेंस सीरम के रूप में एनसीबीआई जीन बैंक में रजिस्टर्ड कर दिया गया है। हाइड्रोजन बनाने के लिए डार्क फर्मेंटेशन की प्रक्रिया अपनाई जाती है। यह एक कम ऊर्जा वाली, एनारोबिक (अवायवीय) प्रक्रिया है, जो पर्यावरणीय और आर्थिक दृष्टिकोण से फायदेमंद है।
आईआईटी बीएचयू की वैज्ञानिक प्रो. आभा मिश्रा ने कहा कि, शुरुआती अध्ययन में पाया गया है कि यह प्रजाति पर्यावरण के अनुकूल बायोपॉलिमर बनाने में भी सक्षम है। वैज्ञानिकों ने बताया कि उत्तर प्रदेश देश में गन्ना का सबसे बड़ा उत्पादक राज्य है। हर साल यहां पर बड़ी मात्रा में खोई निकलती है और खेतों या नालों में फेंक दी जाती है। इससे पर्यावरण प्रबंधन में काफी समस्याएं खड़ी हो जाती हैं। इससे कृषि अपशिष्ट उपयोग और नवीकरणीय ऊर्जा निर्माण की दो महत्वपूर्ण चुनौतियों का समाधान भी मिलेगा। प्रो. मिश्रा संस्थान में बायो मॉलिक्यूलर इंजीनियरिंग प्रयोगशाला की प्रभारी और तथा आईआईटी बीएचयू की अनुसंधान एवं विकास की एसोसिएट डीन भी हैं।