नई दिल्ली: लाइव मिंट में प्रकाशित खबर के मुताबिक, मोलासेस-आधारित डिस्टलरीयों का संचालन करने वाली लगभग एक दर्जन सहकारी चीनी मिलों ने अपने एथेनॉल संयंत्रों को व्यापक रूप से उपलब्ध अनाज पर चलाने के लिए आवेदन किया है। मोलासेस का उत्पादन गन्ने से चीनी बनाने की प्रक्रिया के दौरान होता है। लेकिन गन्ने की पेराई अवधि साल में 4-5 महीने तक ही सीमित होती है, जिसका अर्थ है कि मोलासेस पर निर्भर चीनी मिलें सीमित अवधि तक ही चल सकती हैं। मक्का और क्षतिग्रस्त खाद्यान्न जैसे अनाजों पर स्विच करने से साल भर एथेनॉल उत्पादन सुनिश्चित होगा और सहकारी चीनी मिलों की दक्षता में सुधार होगा, जिनका उत्पादन भारत के कुल चीनी उत्पादन का लगभग एक तिहाई रह गया है।
भारत की 269 सहकारी चीनी मिलों में से 93 मोलासेस-आधारित डिस्टलरीयां संचालित करती हैं। नेशनल फेडरेशन ऑफ को ऑपरेटिव शुगर फैक्ट्रीज़ लिमिटेड के प्रबंध निदेशक प्रकाश नाइकनवरे ने कहा, इन 93 डिस्टिलरियों में से 10 ने मौजूदा गन्ना-आधारित (मोलासेस) फीडस्टॉक एथेनॉल संयंत्रों को मल्टी-फीडस्टॉक-आधारित संयंत्रों में बदलने के लिए आवेदन किया है। इन 10 में से आठ महाराष्ट्र में हैं, जो भारत के सबसे बड़े गन्ना उत्पादक राज्यों में से एक है, और एक-एक गुजरात और कर्नाटक में है। फेडरेशन ऐसे तौर-तरीकों पर काम कर रहा है ताकि ज़्यादा से ज़्यादा सहकारी चीनी मिलें अपनी डिस्टिलरियों को मोलासेस से मल्टी-फीडस्टॉक में बदल सकें।