नई दिल्ली : उत्तर प्रदेश सरकार भारत के बासमती चावल की गुणवत्ता को नुकसान पहुँचाने वाले और प्रमुख विदेशी बाजारों में इसके प्रवेश को रोकने वाले ग्यारह कीटनाशकों के इस्तेमाल पर नए सिरे से प्रतिबंध लगा रही है। यह प्रतिबंध 1 अगस्त से अगले तीन महीनों तक प्रभावी रहेगा। इन रसायनों में एसीफेट, बुप्रोफेज़िन, क्लोरपायरीफॉस, प्रोपिकोनाज़ोल, थियामेथोक्सम, प्रोफेनोफोस, कार्बेन्डाजिम, ट्राईसाईक्लाजोले, टेबुकोनाज़ोल, कार्बोफ्यूरान और इमिडाक्लोप्रिड शामिल हैं। ये रसायन अवशेष छोड़ते हैं जो चावल की गुणवत्ता को कम करते हैं और अक्सर विदेशी खरीदारों द्वारा अस्वीकार कर दिए जाते हैं। यह निर्णय बासमती चावल के सबसे बड़े निर्यातकों में से एक के रूप में भारत की स्थिति को सुरक्षित रखने के प्रयासों का हिस्सा है।
मुरादाबाद के कृषि संरक्षण अधिकारी राजेंद्र कुमार ने इस कदम के पीछे का कारण बताया। उन्होंने एएनआई को दिए एक साक्षात्कार में कहा, 18 अगस्त 2025 को, उत्तर प्रदेश के कृषि विभाग ने उन 11 कीटनाशकों के इस्तेमाल पर प्रतिबंध लगा दिया, जिन पर दो साल पहले प्रतिबंध लगा दिया गया था। इस प्रतिबंध का मुख्य कारण यह है कि, भूसी निकालने के बाद चावल में इन कीटनाशकों के अवशेष रह जाते हैं। इससे चावल की गुणवत्ता खराब होती है, जिससे निर्यात में समस्याएं आती हैं। कई देश तो चावल वापस भी कर देते है।
कुमार के अनुसार, यूरोपीय संघ के सदस्य देशों, अमेरिका, सऊदी अरब, कुवैत, कतर और बहरीन ने इन रसायनों से दूषित चावल पर आपत्ति जताई है। उन्होंने आगे कहा, हम किसानों में जागरूकता भी फैला रहे हैं कि अगर वे इन कीटनाशकों का इस्तेमाल करते हैं, तो उनके उत्पाद का निर्यात नहीं किया जाएगा, जिससे उन्हें आर्थिक नुकसान हो सकता है। मुरादाबाद जिले में किसानों ने इस आह्वान पर प्रतिक्रिया देना शुरू कर दिया है। किसानों ने प्रतिबंधित कीटनाशकों का इस्तेमाल बंद कर दिया है और रसायन-मुक्त खेती अपना रहे हैं। उन्हें उम्मीद है कि ये उपाय उनकी आजीविका की रक्षा करेंगे और अतीत में विदेशी बंदरगाहों पर शिपमेंट को अस्वीकार किए जाने पर होने वाले नुकसान को रोकेंगे।
राज्य कृषि विभाग प्रेस विज्ञप्तियाँ जारी कर रहा है और किसानों को अनुपालन सुनिश्चित करने के लिए पत्र भेज रहा है। अधिकारियों ने ज़ोर देकर कहा है कि प्रतिबंधित कीटनाशकों से उत्पादित फसलें केवल घरेलू बाजार में ही कम दामों पर बिक सकती हैं, इसलिए किसानों के लिए इसे अपनाना ज़रूरी है। कुमार ने यह भी पुष्टि की है कि, क्षेत्र में यूरिया जैसी आवश्यक सामग्री की कोई कमी नहीं है। सहकारी समितियों को फसल के मौसम के दौरान किसानों को निरंतर आपूर्ति उपलब्ध कराने का काम सौंपा गया है।