भारतीय चीनी उद्योग परंपरागत रूप से दो प्रमुख प्रक्रियाओं पर निर्भर करता है, डबल सल्फिटेशन तथा रॉ-रिफाइन प्रक्रिया, जिनके माध्यम से गन्ने के रस को प्लांटेशन व्हाइट शुगर तथा रॉ/रिफाइंड शुगर में परिवर्तित किया जाता है। इनमें से डबल सल्फिटेशन विधि पर्यावरण की दृष्टि से कम अनुकूल मानी जाती है। इसी चुनौती के समाधान हेतु निदेशक, प्रो.सीमा परोहा के नेतृत्व में श्री महेंद्र कुमार यादव, सहायक आचार्य (शुगर टेक्नोलॉजी) की टीम के द्वारा एक शोध परियोजना के तहत एक पर्यावरण-अनुकूल नेचुरल क्लैरिफिकेंट आधारित चीनी उत्पादन प्रक्रिया विकसित एवं सफलतापूर्वक परीक्षण की गई है। य़ह शोध कार्य मे.रायटन प्रा.लि. (Ms RAITAN Pvt. Ltd.) के राष्ट्रीय शर्करा संस्थान, कानपुर के साथ हुए एम.ओ.यू. के तहत किया गया है। इस अभिनव प्रक्रिया में सल्फर आधारित क्लैरीफिकेशन के स्थान पर टैनिन-आधारित प्राकृतिक कोएगुलेंट का उपयोग किया गया है। टैनिन-आधारित प्राकृतिक कोएगुलेंट क्वेब्राचो वृक्ष से प्राप्त होता है, जो अर्जेंटीना में पाया जाता है, जिसे मे.रायटन प्रा.लि. ने शोध हेतु संस्थान को उपलब्ध करवाया है।
जिसे भारत में उपलब्ध विभिन्न वृक्षों, जैसे बबूल, जामुन, अर्जुन, बहेड़ा, आम की छाल, नीम की छाल, युकलिप्टुस, हरड़, खैर आदि से भी प्राप्त किया जा सकता है।शोध का प्रारंभिक संचालन एनएसआई अनुसंधान प्रयोगशाला में किया गया तथा बाद में एक वाणिज्यिक चीनी मिल की प्रयोगशाला में इसका प्रमाणीकरण किया गया।
प्राप्त परिणामों के आधार पर बलरामपुर चीनी मिल्स लिमिटेड, यूनिट–रौजागांव, अयोध्या में एक वाणिज्यिक परीक्षण किया गया। उद्देश्य था, वनस्पति आधारित अर्कों को परंपरागत सल्फर-निर्भर क्लैरीफिकेशन के टिकाऊ विकल्प के रूप में अपनाने की व्यवहारिकता का मूल्यांकन करना, जिससे सल्फिटेशन को समाप्त कर आर्गेनिक चीनी निर्माण को बढ़ावा दिया जा सके। यह वाणिज्यिक परीक्षण, राष्ट्रीय शर्करा संस्थान (एनएसआई), कानपुर के निदेशक की उपस्थिति में, 16.11.2025 से 18.11.2025 तक बिना किसी परिचालन बाधा के सुचारू रूप से संचालित हुआ।
परिणामों से यह स्पष्ट हुआ कि प्राकृतिक अर्क-आधारित प्रक्रिया ने चूने (मिल्क ऑफ लाइम) की खपत को उल्लेखनीय रूप से कम किया, फ्लोकुलेंट की आवश्यकता को समाप्त किया तथा पूर्व विधि की तुलना में बेहतर गुणवत्ता की चीनी उत्पन्न की। विशेष रूप से, उत्पादित चीनी का रंग लगभग 70% तक सुधरा, जो गुणवत्ता में एक उल्लेखनीय सुधार है।

ये निष्कर्ष सभी डबल-सल्फिटेशन इकाइयों को इस पर्यावरण-उत्तरदायी प्रौद्योगिकी की ओर स्थानांतरित करने की संभावनाओं को पुनः पुष्टि करते हैं, जो राष्ट्रीय सतत विकास लक्ष्यों तथा हरित औद्योगिक प्रथाओं की वैश्विक दिशा के अनुरूप है। वाणिज्यिक परीक्षण के दौरान श्री अनुराग वर्मा, तकनीकी सहायक एवं शोधार्थी, सुश्री शालिनी वर्मा ने आवश्यक विश्लेषणात्मक सहयोग प्रदान किया। यह महत्वपूर्ण प्रयास भारतीय चीनी उद्योग के लिए एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर साबित होगा एवं स्वच्छ, आर्गेनिक चीनी उत्पादन की ओर एक आशाजनक मार्ग प्रस्तुत करेगा।
गन्ना रस परिशोधन में हरित नवोन्मेष
-परंपरागत सल्फर-निर्भर क्लैरिफिकेशन का पूर्ण उन्मूलन
-पीएच में स्वाभाविक वृद्धि
-शुद्धता (Purity) में 2–3 यूनिट की बढ़ोतरी
-टर्बिडिटी में भारी कमी
-चूना (Milk of Lime) की खपत में कमी
-अंतिम चीनी के रंग में लगभग 70% सुधार
-उच्च शुद्धता एवं बेहतर दक्षता
-100% पर्यावरण-अनुकूल एवं बायोडिग्रेडेबल
-कम स्लज (कीचड़) निर्माण
-सीओडी स्तर में कमी से अपशिष्ट जल उपचार की लागत घटेगी















