पुणे: हेल्दी लाइफस्टाइल की वजह से घरेलू चीनी की खपत कम हुई है। घरेलू चीनी की खपत दो लाख टन कम हुई है।साथ ही, शुगर-फ्री प्रोडक्ट्स की डिमांड की वजह से सॉफ्ट ड्रिंक्स में चीनी की मात्रा कम होने से शुगर इंडस्ट्री की हालत चिंताजनक है।’ यह जानकारी नेशनल कोऑपरेटिव शुगर फैक्ट्रीज़ फेडरेशन के प्रेसिडेंट हर्षवर्धन पाटिल ने दी। ‘शुगर इंडस्ट्री को बनाए रखने के लिए उन्होंने केंद्र सरकार से बायो CNG, एथेनॉल, चीनी एक्सपोर्ट और चीनी MSP बढ़ाने की मांग की है।
चीनी के ज़्यादा प्रोडक्शन और कम डिमांड को देखते हुए, नेशनल शुगर फेडरेशन ने शुगर प्रोडक्शन और शुगर इंडस्ट्री की दिक्कतों को लेकर अगले दस सालों के लिए एक शुगर पॉलिसी तैयार की है। शुक्रवार को वर्कशॉप में इसका प्रेजेंटेशन दिया गया। उसके बाद हर्षवर्धन पाटिल ने प्रेस से बातचीत की। इस मौके पर शुगर कमिश्नर डॉ. संजय कोलते और फेडरेशन के मैनेजिंग डायरेक्टर प्रकाश नाइकनवरे मौजूद थे। पाटिल ने कहा, शुगर इंडस्ट्री की दिक्कतों पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, केंद्रीय सहकारिता मंत्री अमित शाह और केंद्रीय खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण मंत्री प्रल्हाद जोशी को अलग-अलग मांगों का एक मेमोरेंडम भेजा गया है। लेटर में केंद्र सरकार से शुगर इंडस्ट्री को बचाने के लिए तुरंत दखल देने की रिक्वेस्ट की गई है।
पाटिल ने कहा, देश के पांच करोड़ गन्ना किसानों को 2022-23 शुगर सीजन के मुकाबले 2024-25 सीजन में 1200 करोड़ रुपये कम मिले हैं।हालांकि, इस बात पर सहमति बनी है कि अगर शुगर फैक्ट्रियां मुनाफा कमाती हैं तो किसानों को भी प्रॉफिट में हिस्सा मिलेगा, लेकिन किसानों को इसका फायदा नहीं मिल रहा है। अभी गन्ने की प्रोडक्शन कॉस्ट (काटने और ट्रांसपोर्टेशन मिलाकर) 4,000 रुपये प्रति टन से ज्यादा है। नेशनल लेवल पर शुगर फैक्ट्रियों को मिलने वाला चीनी का रेट 3,750 रुपये प्रति क्विंटल है। गन्ने के फेयर एंड रिम्यूनरेटिव प्राइस (FRP) और चीनी के मिनिमम सेलिंग प्राइस (MSP) के बीच गैप की वजह से शुगर फैक्ट्रियों को फाइनेंशियल दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है। इसलिए, चीनी की कीमत, जो छह साल से स्थिर है, 4100 रुपये प्रति क्विंटल होनी चाहिए।’
उन्होंने कहा, देश की आबादी 140 करोड़ है और इसके लिए 300 लाख मीट्रिक टन चीनी की खपत होने की उम्मीद है।यह 280 लाख मीट्रिक टन हो गई है।देश की सालाना 280 लाख मीट्रिक टन चीनी का 70 प्रतिशत अलग-अलग कंपनियां इस्तेमाल करती हैं। हालांकि, चूंकि ये कंपनियां आम कंज्यूमर्स को मिलने वाले रिटेल प्राइस पर चीनी खरीद रही हैं, इसलिए गन्ना किसानों को कोई फायदा नहीं मिलता है। इससे बचने के लिए, केंद्र सरकार को चीनी के लिए डुअल प्राइसिंग सिस्टम लागू करना चाहिए। पाटिल ने यह भी साफ किया कि, सॉफ्ट ड्रिंक कंपनियों, फूड प्रोसेसिंग इंडस्ट्री, रेस्टोरेंट और मिठाई बनाने वालों के लिए चीनी साठ से सत्तर रुपये प्रति kg के भाव पर बेची जानी चाहिए।

















