सस्टेनेबल मोबिलिटी के लिए एथेनॉल सबसे असरदार क्लीन एनर्जी का रास्ता : विक्रम गुलाटी

नई दिल्ली : ज़ी न्यूज़ डिजिटल के साथ एक खास बातचीत में, टोयोटा के इंडिया हेड, विक्रम गुलाटी ने फ्यूल के तौर पर एथेनॉल, कार्बन न्यूट्रैलिटी, EV बनाम हाइब्रिड, ऑटोमोबाइल इंडस्ट्री पर हाल के GST सुधारों का असर, E20 पेट्रोल विवाद, देश में टोयोटा की परफॉर्मेंस और भी बहुत कुछ पर अपने विचार शेयर किए। उन्होंने कहा, एथेनॉल सस्टेनेबल मोबिलिटी के लिए सबसे असरदार क्लीन एनर्जी का रास्ता है।

विक्रम गुलाटी ने कहा, कार्बन इंसानियत के सामने सबसे बड़ी समस्याओं में से एक होने जा रहा है। टोयोटा ने 2015 में वादा किया था कि, वह 2050 तक टेल्पाइप बेसिस पर नहीं बल्कि लाइफ साइकिल बेसिस पर कार्बन न्यूट्रल हो जाएगी। इसका मतलब है कि हम न सिर्फ अपनी बनाई गाड़ियों से बल्कि अपनी बनाई मैन्युफैक्चरिंग से भी कार्बन को खत्म करने की ज़िम्मेदारी ले रहे हैं, साथ ही अपने सप्लायर्स, हमारे डीलर्स से भी, जो भारत में पूरी वैल्यू चेन है। मुझे यह कहते हुए गर्व हो रहा है कि, हमने पहले ही कुछ बहुत शानदार माइलस्टोन हासिल कर लिए हैं।

उन्होंने कहा, आज मैन्युफैक्चरिंग साइड में हमारी बिजली की जरूरतों के लिए 100% रिन्यूएबल एनर्जी का इस्तेमाल होता है, जिससे हमारी मैन्युफैक्चरिंग कार्बन न्यूट्रल होने के बहुत करीब आ रही है। आज हम जो प्रोडक्ट्स बेच रहे हैं, उनमें हमने बहुत बड़ी संख्या में हाइब्रिड इलेक्ट्रिक गाड़ियां बेची हैं। यह देखते हुए कि भारत में आज बिजली मुख्य रूप से कोयले पर आधारित है।अब हम ऐसी टेक्नोलॉजी लाने की सोच रहे हैं जो सस्टेनेबल लो कार्बन हों और सभी कस्टमर की ज़रूरतों को पूरा करें।

भारत के एनर्जी ट्रांजेक्शन के लिए आइडल पाथवे पर टोयोटा के नजरिए पर बोलते हुए उन्होंने कहा, हमारा प्रमुख उद्देश्य फॉसिल फ्यूल का इस्तेमाल कम करना है और इस दिशा में हाइब्रिड और इलेक्ट्रिक गाड़ियां दोनों एक ही मकसद को पूरा करती हैं। हाइब्रिड और इलेक्ट्रिक दोनों ही बहुत समान हैं क्योंकि हाइब्रिड इलेक्ट्रिक गाड़ी में दो पावरट्रेन होते हैं, जिनमें से एक पूरी तरह इलेक्ट्रिक पावरट्रेन होता है।यह अपने आप काफी लंबी दूरी तक सिर्फ़ इलेक्ट्रिक मोड पर चल सकता है।उन्होंने कहा, इलेक्ट्रिक बनाम हाइब्रिड के बारे में यह पूरी बहस बहुत गलत है क्योंकि दोनों का मकसद फॉसिल फ्यूल की खपत और डीकार्बोनाइज़ेशन को कम करना है और दोनों एक-दूसरे के पूरक हैं।

एथेनॉल के बारे में उन्होंने कहा, यह पौधों, गन्ने से आता है। अब, जब पौधे बढ़ते हैं, तो वे कार्बन सोखते हैं। तो इस मटीरियल से जो फ्यूल बनता है, यह फीड स्टॉक असल में कार्बन न्यूट्रल होता है। इसलिए यह रिन्यूएबल बिजली जितना ही क्लीन है। यह असल में खेती की इकॉनमी में मदद करता है।एथेनॉल का जादा से जादा इस्तेमाल किसानों की इनकम बढ़ाने में मदद करेगा। तो मेरे हिसाब से यह भारत और ग्लोबल साउथ में मोबिलिटी की ओर सबसे असरदार, सबसे सही एनर्जी का रास्ता है। हमने बहुत कम समय में ही E20 हासिल कर लिया है। बहुत कम समय में इससे भारत को फॉसिल फ्यूल इंपोर्ट पर 1.5 ट्रिलियन रुपये करोड़ रुपये बचाने में मदद मिली है। इसमें से 1.4 ट्रिलियन रुपये किसानों को मिले हैं।

उन्होंने कहा, योगदान को सोशल इम्पैक्ट से भी मापा जा सकता है। पिछले 5 सालों से, हमने गन्ना किसानों को बकाया पेमेंट न मिलने की वजह से कोई परेशानी नहीं देखी है। हमने बिहार जैसे कुछ कृषि राज्यों में देखा है कि मक्के की कीमत 12 रुपये से बढ़कर 24-26 रुपये हो गई है, जिससे उन लोगों की रोज़ी-रोटी बेहतर हुई है। सबसे ज़रूरी बात यह है कि एथेनॉल कार्बन न्यूट्रल है, इसलिए यह पर्यावरण में कार्बन नहीं डाल रहा है। यह क्लाइमेट चेंज से लड़ने में मदद कर रहा है। मेरे हिसाब से, यह सबसे असरदार आसान रास्ता है जो हमें सबसे तेज़ तरीके से सस्टेनेबल मोबिलिटी हासिल करने में मदद कर सकता है, ऐसे पैमाने पर जिसकी बराबरी कोई दूसरा रास्ता नहीं कर सकता।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here