नई दिल्ली : भारत ने बुधवार को टैरिफ-रेट कोटा (TRQ) के तहत मक्का, कच्चे सूरजमुखी तेल, परिष्कृत रेपसीड तेल और दूध पाउडर के सीमित आयात की अनुमति दी, जहाँ आयातक शून्य या कम शुल्क का भुगतान करते है।सरकार खाद्य मुद्रास्फीति को कम करने की कोशिश कर रही है। भारत पाम ऑयल, सोया ऑयल और सूरजमुखी तेल जैसे वनस्पति तेलों का दुनिया का सबसे बड़ा आयातक और दूध का शीर्ष उत्पादक है। सरकार ने कहा कि, भारत ने 150,000 मीट्रिक टन सूरजमुखी तेल या कुसुम तेल, 4,98,900 टन मक्का, 10,000 टन दूध पाउडर और 150,000 टन परिष्कृत रेपसीड तेल के आयात की अनुमति दी है।
प्रतिकूल मौसम के कारण फसलों पर पड़ने वाले असर जैसे आपूर्ति पक्ष के कारकों से प्रेरित खाद्य मुद्रास्फीति नवंबर 2023 से सालाना आधार पर लगभग 8% पर बनी हुई है, जिससे ब्याज दरों में कटौती करने में बाधा आ रही है।सरकार ने आयात के लिए सहकारी समितियों और राज्य द्वारा संचालित कंपनियों, जैसे कि राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड (NDDB), राष्ट्रीय सहकारी डेयरी संघ (NCDF), और भारतीय राष्ट्रीय कृषि सहकारी विपणन संघ लिमिटेड (NAFED) को चुना है।
वैश्विक व्यापार घराने के मुंबई स्थित एक डीलर ने कहा, रियायती शुल्क पर सूरजमुखी और रेपसीड तेल के आयात की अनुमति देने की कोई आवश्यकता नहीं थी।सस्ते आयात के कारण तिलहन की कीमतें पहले से ही दबाव में हैं, जिस पर अभी भी शुल्क लगता है। अब शुल्क मुक्त आयात अतिरिक्त दबाव डालेगा।भारत अपनी वनस्पति तेल की लगभग दो-तिहाई आवश्यकताओं को मुख्य रूप से इंडोनेशिया और मलेशिया से पाम तेल के आयात के माध्यम से पूरा करता है, साथ ही रूस, यूक्रेन, अर्जेंटीना और ब्राजील से सूरजमुखी तेल और सोयाबीन तेल भी आयात करता है।
भारत दुनिया का सबसे बड़ा दूध उत्पादक है, लेकिन हाल ही में, प्रमुख डेयरियों ने सीमित आपूर्ति के बीच मजबूत मांग के कारण दूध और दूध उत्पादों की कीमतें बढ़ा दी हैं। पोल्ट्री और एथेनॉल उद्योग की मजबूत मांग के कारण घरेलू मकई की कीमतें बढ़ रही थीं। भारत, जो किसी भी आनुवंशिक रूप से संशोधित खाद्य फसलों की खेती की अनुमति नहीं देता है, ने यह सुनिश्चित करने के लिए नियम बनाए हैं कि आयात में आनुवंशिक रूप से संशोधित जीवों का कोई निशान न हो।
इस संबंध में वेस्ट इंडियन शुगर मिल्स एसोसिएशन (विस्मा) के अध्यक्ष बी. बी. ठोंबरे ने कहा कि, मक्के का आयात केवल एक अस्थायी सहायता है, जिसके दीर्घकालिक लाभ की संभावना कम है। देश में मक्के की फसल का उत्पादन बढ़ाने के लिए केंद्र और राज्य सरकारों को किसानों को प्रोत्साहन और सब्सिडी देने की जरूरत है। यदि ऐसा हुआ तो मक्के की फसल का घरेलू उत्पादन प्रचुर मात्रा में हो सकता है। इससे किसानों के जीवन में आर्थिक स्थिरता तो आएगी ही, इसके अलावा घरेलू बाजार में एथेनॉल उत्पादन के लिए पर्याप्त मात्रा में मक्का उपलब्ध हो सकेगा। इससे पोल्ट्री उद्योग को भी फायदा हो सकता है।











