भारत SAF की घरेलू मांग को पूरा करने और अधिशेष निर्यात करने में सक्षम : रिपोर्ट

नई दिल्ली : केंद्र सरकार द्वारा किए गए एक व्यवहार्यता अध्ययन में कहा गया है कि, भारत में एक मजबूत घरेलू टिकाऊ विमानन ईंधन (SAF) उद्योग विकसित करने की अपार क्षमता है, जो अपनी आंतरिक मांग को पूरी तरह से पूरा करने में सक्षम है और साथ ही निर्यात के लिए अतिरिक्त ईंधन भी उपलब्ध है। रिपोर्ट में इस बात पर ज़ोर दिया गया है कि, भारत में विभिन्न फीडस्टॉक्स जैसे वनस्पति तेल, गन्ने की खोई, चावल के भूसे और नगरपालिका के ठोस अपशिष्ट से प्रति वर्ष 14-33 मिलियन टन (Mt) से अधिक SAF का उत्पादन करने की क्षमता है, जो जैवजनित फीडस्टॉक्स का बड़ा हिस्सा हैं।

हालाँकि, इस अनुमान में अपशिष्ट गैस किण्वन या ऊर्जा-से-द्रव आधारित SAF से संभावित SAF शामिल नहीं है।यह रिपोर्ट नागरिक उड्डयन मंत्रालय द्वारा संयुक्त राष्ट्र विमानन नियामक, अंतरराष्ट्रीय नागरिक उड्डयन संगठन (ICAO) के साथ साझेदारी में प्रकाशित की गई है। इसे यूरोपीय संघ का भी समर्थन प्राप्त है। यह अध्ययन ICAO ACT-SAF (सतत विमानन ईंधन के लिए सहायता, क्षमता निर्माण और प्रशिक्षण) कार्यक्रम का हिस्सा है। यह रिपोर्ट नागरिक उड्डयन मंत्री राम मोहन नायडू के नेतृत्व में भारतीय प्रतिनिधिमंडल द्वारा अगले सप्ताह 23 सितंबर से शुरू होने वाली आईसीएओ की 2025 की आम सभा के दौरान प्रस्तुत की जाएगी। तीन साल में एक बार होने वाला यह आयोजन वैश्विक नीति निर्धारण और आईसीएओ के कार्यों की समीक्षा के लिए आयोजित किया जाता है।

आईसीएओ के वैश्विक ढांचे में 2030 तक SAF, निम्न कार्बन विमानन ईंधन (LCAF) और अन्य स्वच्छ ऊर्जाओं के उपयोग के माध्यम से अंतरराष्ट्रीय विमानन से होने वाले CO2 उत्सर्जन में 5% की कमी का एक महत्वाकांक्षी लक्ष्य निर्धारित किया गया है। भारत ने अंतरराष्ट्रीय नागरिक उड्डयन संगठन (ISO) की अंतरराष्ट्रीय विमानन के लिए कार्बन ऑफसेटिंग और न्यूनीकरण योजना (सीओआरएसआईए) के अनुपालन के अनुरूप अंतरराष्ट्रीय उड़ानों के लिए 2027 तक 1%, 2028 तक 2% और 2030 तक 5% SAF मिश्रण का लक्ष्य रखा है।

अध्ययन में घरेलू SAF क्षेत्र के लिए एक दृष्टिकोण और रणनीति विकसित करने हेतु सरकारी विभागों के उच्च-स्तरीय प्रतिनिधियों और संबंधित हितधारकों के सीईओ के साथ एक SAF परिषद की स्थापना जैसे तत्काल नीतिगत उपायों का आह्वान किया गया है। यह भारत में SAF विकास हेतु एक नीतिगत ढाँचा स्थापित करने हेतु तत्काल कार्रवाई पर भी ज़ोर देता है ताकि प्रौद्योगिकियों के धीमे व्यवसायीकरण और उच्च उत्पादन लागत सहित विभिन्न चुनौतियों का समाधान खोजा जा सके।

स्थायी विमानन ईंधन के उत्पादन के विभिन्न तरीकों में से, अध्ययन अल्कोहल-टू-जेट (ATJ) प्रक्रिया के माध्यम से SAF को “भारत के लिए सबसे बड़ा अवसर” बताता है क्योंकि एथेनॉल के लिए फीडस्टॉक विकल्प उपलब्ध हैं और परिवहन एवं एकत्रीकरण में आसानी है। हालांकि, यह सड़क परिवहन क्षेत्र से एथेनॉल की प्रतिस्पर्धी माँग के बारे में भी आगाह करता है, जहाँ एथेनॉल-मिश्रित पेट्रोल (E20) का चलन बढ़ रहा है। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि, खाद्य फसलों (या पहली पीढ़ी या 1जी एथेनॉल) से प्राप्त एथेनॉल वर्तमान समय में अधिक आकर्षक विकल्प है क्योंकि दूसरी पीढ़ी (2G) एथेनॉल के उत्पादन की गति धीमी है, जो कृषि अवशेषों, घास, लकड़ी और अन्य लिग्नो-सेल्युलोसिक सामग्रियों जैसे गैर-खाद्य बायोमास से उत्पादित होता है।

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