पुणे : यवत पुलिस ने जिला मजिस्ट्रेट कार्यालय और जिला विधिक सेवा प्राधिकरण (डीएलएसए) के अधिकारियों के साथ मिलकर मंगलवार को दौंड तालुका के राहु गाँव स्थित एक गन्ने के खेत से नौ अलग-अलग परिवारों के 27 बंधुआ मजदूरों को छुड़ाया। बचाए गए लोगों में दो गर्भवती महिलाएं और छह बच्चे शामिल थे। यह कार्रवाई एक पीड़िता द्वारा वर्षों तक बंधक बनाए रखने और शोषण का आरोप लगाने वाली शिकायत के बाद की गई।
बंधुआ मजदूरी प्रणाली (उन्मूलन) अधिनियम और भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) की संबंधित धाराओं के तहत दो खेत मालिकों के खिलाफ मामला दर्ज किया गया है। पुलिस में दर्ज प्राथमिकी के अनुसार, अहिल्यानगर जिले के कोपरगांव तालुका की निवासी महिला शिकायतकर्ता ने आरोप लगाया कि, आरोपी 2015 में 10,000 रुपये की अग्रिम राशि देकर उसके परिवार के सदस्यों को अपने गन्ने के खेतों में काम करने के लिए लाया था।
इसके बाद कथित तौर पर मज़दूरों को गाँव से बाहर जाने की अनुमति नहीं दी गई। कथित तौर पर उनका लगातार पीछा किया जाता था, यहाँ तक कि बाजार जाते समय भी, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि वे गाँव से बाहर न जाएँ। डीएलएसए के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि यह घटना तब सामने आई जब लगभग एक साल पहले भागने में कामयाब रहे एक पुरुष पीड़ित ने जिला कलेक्टर और डीएलएसए से मामले की शिकायत की। जिला कलेक्टर और संबंधित अधिकारियों ने पुलिस के साथ मिलकर उस जगह पर छापा मारा और मजदूरों को बचाया।
बचाए गए सभी मजदूर अहिल्यानगर जिले के संगमनेर और कोपरगाँव तालुका के निवासी हैं। उनमें से कुछ को 10 साल पहले और बाकी को लगभग छह साल पहले दौंड लाया गया था। शिकायतकर्ता महिला ने दावा किया कि, आरोपियों ने उन्हें यात्रा करने की अनुमति नहीं दी, यहाँ तक कि परिवार के अंतिम संस्कार में भी शामिल होने की अनुमति नहीं दी और उन्हें प्रताड़ित किया। 20 अक्टूबर को स्थिति और बिगड़ गई, जब उसका भतीजा बीमार पड़ गया और परिवार ने उसे डॉक्टर के पास ले जाने का अनुरोध किया।
आरोपियों ने कथित तौर पर लड़के के साथ मारपीट की, उस पर बीमारी का नाटक करने का आरोप लगाया और उसे घर के अंदर बंद कर दिया ताकि वह बाहर न जा सके। यवत पुलिस स्टेशन के वरिष्ठ निरीक्षक नारायण देशमुख ने कहा कि किसी भी आरोपी को गिरफ्तार नहीं किया गया क्योंकि मामले में लगाई गई सभी धाराएं जमानती थीं। जिला कलेक्टर कार्यालय की ओर से जारी एक आधिकारिक बयान में कहा गया है, “सभी मजदूरों को ज़रूरी दस्तावेज़ मुहैया कराए गए और उन्हें उनके गृहनगर वापस भेजने के लिए एक वाहन की व्यवस्था की गई।”
डीएलएसए द्वारा गठित विशेष टीम की एक सदस्य, जो बचाव दल का हिस्सा थीं, ने बताया कि बचाई गई एक पीड़िता नौ महीने से ज़्यादा की गर्भवती थी। बचाए जाने के एक दिन बाद ही उसने एक बच्ची को जन्म दिया। डीएलएसए द्वारा गठित विशेष टीम की सदस्य सामाजिक कार्यकर्ता कैरल पेरेरा ने ‘टाइम्स ऑफ़ इंडिया’ को बताया कि, गन्ने के खेतों में ऐसी घटनाएं अक्सर होती रहती हैं और ये किसी ख़ास इलाके या ज़िले तक सीमित नहीं हैं। उन्होंने कहा, ज्यादातर मामलों में, आरोपी पीड़ितों को न्यूनतम मजदूरी नहीं देते और उन्हें यात्रा करने की अनुमति नहीं देते।












