काठमांडू : महोतारी और व्यापक मधेश क्षेत्र के गन्ना किसानों ने सरकार से आगामी वित्तीय वर्ष में गन्ना खेती के लिए सब्सिडी को खत्म करने के अपने फैसले पर पुनर्विचार करने का आग्रह किया है। किसानों ने संघीय बजट में पिछले सात वर्षों से प्रदान की जा रही सब्सिडी को जारी रखने का उल्लेख न किए जाने पर निराशा व्यक्त की। चीनी मिलों को दिए जाने वाले गन्ने के वजन के आधार पर ये सब्सिडी गन्ना उत्पादकों के लिए एक महत्वपूर्ण सहायता प्रणाली रही है।
बरदीबास-9 के एक किसान महेंद्र महतो ने कहा, सरकारी सब्सिडी हमारे लिए एक बड़ा सहारा थी। इस साल के बजट से इसे बाहर करना चिंताजनक है। सरकार को इस फैसले पर पुनर्विचार करना चाहिए। महतो जैसे कई गन्ना किसान अधिकारियों से वित्तीय सहायता जारी रखने की मांग कर रहे हैं, जिस पर वे लंबे समय से निर्भर हैं। रामनगर के भंगहा-4 के 50 वर्षीय किसान अरुण गिरी ने कहा, हमें अपनी उपज का कभी उचित मूल्य नहीं मिला। अब जबकि सब्सिडी भी बंद हो गई है, तो समय आ गया है कि हम वैकल्पिक फसलों पर विचार करें। उन्होंने कहा कि, हालांकि सब्सिडी कभी-कभी देरी से मिलती है, लेकिन एकमुश्त राशि मिलने से घर और खेती के खर्च चलाने में मदद मिलती है।
किसान इस बात को लेकर खासे चिंतित हैं कि, उन्हें चालू वित्त वर्ष के लिए वादा किए गए 70 रुपये प्रति क्विंटल की सब्सिडी मिलेगी या नहीं। हालांकि, ट्रेजरी और अकाउंट्स कंट्रोल ऑफिस ने एवरेस्ट शुगर इंडस्ट्री को आपूर्ति करने वाले 14,533 गन्ना किसानों के लिए कुल 2.17 बिलियन रुपये की सब्सिडी की सिफारिश की है, लेकिन इस बात को लेकर अनिश्चितता है कि धनराशि कब या जारी होगी या नहीं।
इस अनिश्चितता ने किसानों के बीच आशंकाओं को और गहरा कर दिया है, क्योंकि पिछले साल की सब्सिडी – 14,444 किसानों के लिए 2.03 बिलियन रुपये की राशि – दशईं त्योहार से ठीक पहले वितरित की गई थी। गन्ना उत्पादक संघ के अध्यक्ष नरेश सिंह कुशवाह ने चेतावनी दी है कि, गन्ने की खेती का भविष्य खतरे में है। उन्होंने कहा, बजट में स्पष्ट प्रतिबद्धता के बिना, यह खेती अब टिकाऊ नहीं रह गई है। किसान अब सरकार से अपनी स्थिति स्पष्ट करने और यह सुनिश्चित करने का आग्रह कर रहे हैं कि गन्ने की खेती (जो इस क्षेत्र में हजारों लोगों के लिए आजीविका का एक महत्वपूर्ण स्रोत है) को बिना समर्थन के न छोड़ा जाए।