कानपुर : चीनी मिलों के राजस्व में बढ़ोतरी करनेवाला नया विकल्प खुल गया है, जो पर्यावरण अनुकूल भी है। ‘जनता से रिश्ता’ में प्रकाशित खबर के मुताबिक, चीनी मिलों से निकलने वाली राख वायु प्रदूषण का बड़ा कारण है, लेकिन अब इसका पर्यावरण अनुकूल और स्थायी समाधान मिल गया है। राष्ट्रीय शर्करा संस्थान के पूर्व निदेशक प्रो. नरेंद्र मोहन के नेतृत्व में शोध दल ने इससे टिकाऊ ईंट तैयार करने की विधि विकसित की है।
महाराष्ट्र के कोल्हापुर और यूपी के सीतापुर के रामगढ़ की चीनी मिलों में भी इस तकनीक का इस्तेमाल शुरू हो गया है।अब दोनों चीनी मिलों की राख से ईंटें बनाई जा रही हैं, जो परंपरागत ईंटों से ज्यादा मजबूत और नमी रहित हैं। इन ईंटों से बनी दीवारों पर प्लास्टर करने की जरूरत नहीं है। पांच हजार टन गन्ना पेराई करने वाली एक चीनी मिल से प्रतिदिन 20 टन तक राख निकलती है। अभी तक चीनी मिलों द्वारा इस राख का निपटान गड्ढों को भरकर किया जाता रहा है, लेकिन चीनी मिलों से निकलने वाली राख में कई तरह के रसायन होने के कारण इसे मिट्टी के स्वास्थ्य के लिए उपयुक्त नहीं माना जाता है। लेकिन अब टिकाऊ ईंट बनाने के इस नए शोध के चलते प्रदुषण भी नहीं होगा उअर मिलों का राजस्व भी बढ़ सकता है।