नई दिल्ली: दुनिया का दूसरे सबसे बड़ा तेल उत्पादक रूस है, जो मुख्य रूप से यूरोपीय रिफाइनरियों को कच्चे तेल की बिक्री करता है और यूरोप को प्राकृतिक गैस का सबसे बड़ा आपूर्तिकर्ता भी रूस ही है, जो लगभग 35 प्रतिशत आपूर्ति करता है। वैश्विक मांग में बढ़ोतरी और ओपेक द्वारा कम उत्पादन के कारण तेल की मौजूदा कमी के बीच आपूर्ति में व्यवधानों की आशंका बढ़ने से ब्रेंट मंगलवार को 96 डॉलर प्रति बैरल से पार हो गया। अब यूक्रेन संकट के बढ़ने से 2014 के बाद पहली बार ब्रेंट ऑयल 105 अमेरिकी डॉलर प्रति बैरल के करीब पहुंचा है, जिसका सीधा असर भारत पर भी होनेवाला है।विशेषज्ञों का मानना है कि, यूक्रेन संकट से भारत के कच्चे तेल आयात बिल को 15 प्रतिशत तक बढ़ा सकती है। रूस पर प्रतिबंध लगाने के चलते कच्चे या प्राकृतिक गैस की कम आपूर्ति से तेल की कीमतों और वैश्विक अर्थव्यवस्था पर भारी प्रभाव पड़ेगा।
क्रिसिल रिसर्च के निदेशक, हेतल गांधी के अनुसार, यूक्रेन संकट ने कच्चे तेल की कीमतों को 8 साल के उच्च स्तर तक बढ़ा दिया है और कीमतें इसी स्तर पर बनी रह सकती हैं। गांधी ने कहा, पिछले तीन महीनों में, ओपेक सदस्य अपने उत्पादन लक्ष्यों को पूरा नहीं कर रहे हैं, जिसने कीमतों को प्रभावित किया है। परिणाम भारत के लिए ऊर्जा और व्यापार-घाटा नकारात्मक है, क्योंकि हम अपनी कच्चे तेल की आवश्यकता का लगभग 85 प्रतिशत आयात करते हैं। आनंद राठी शेयर्स एंड स्टॉक ब्रोकर्स के कमोडिटीज एंड करेंसी डायरेक्टर नवीन माथुर ने कहा, अगर क्रूड 100 डॉलर प्रति बैरल के आसपास रहता है, तो आने वाले महीनों में भारत का इंपोर्ट बिल करीब 15 फीसदी तक बढ़ सकता है। माथुर ने कहा, भारत के लिए कच्चे तेल की कीमतों में बढ़ोतरी से मुद्रास्फीति का जोखिम पैदा होता है। भारतीय तेल विपणन कंपनियां अंतरराष्ट्रीय दरों के साथ संरेखित करने के लिए हर दिन खुदरा पंपों पर बेचे जाने वाले ईंधन की कीमत में बदलाव कर सकती हैं। लेकिन उन्होंने नवंबर से कीमतों में कोई बदलाव नहीं किया है।
मोतीलाल ओसवाल फाइनेंशियल सर्विसेज के वरिष्ठ उपाध्यक्ष (कमोडिटी एंड करेंसी) नवनीत दमानी का मानना है कि, यूक्रेन संकट, अमेरिका में कड़ाके की ठंड और दुनिया भर में तेल एवं गैस आपूर्ति में निवेश की कमी के कारण तेल की कीमत 100 अमेरिकी डॉलर प्रति बैरल से ऊपर जा सकती है। रूस दुनिया भर में खपत होने वाले हर 10 बैरल तेल में से एक के लिए जिम्मेदार है। इसलिए जब तेल की कीमत निर्धारित करने की बात आती है तो रूस एक प्रमुख खिलाड़ी होता है।














