नई दिल्ली: चीनी इंडस्ट्री के विशेषज्ञों का कहना है कि सरकार ने चीनी मिलों को इथेनॉल इकाइयां स्थापित करने के लिए 15,000 करोड़ रुपये का सॉफ्ट लोन देने की योजना तैयार की है, लेकिन यह योजना आज बहुत ही धीमी गति से चल रही है। इस योजना में अबतक केवल 800 करोड़ रुपये ही वितरित किये गये हैं। केंद्र सरकार ने इस ऋण पैकेज की घोषणा दो चरणों में की थी – पहली जून 2018 में 4,440 करोड़ रुपये की और दूसरी मार्च 2019 में 10,540 करोड़ रुपये की।
इसका उद्देश्य गन्ने के बकाया को चुकाना था और अधिशेष चीनी को इथेनॉल में परिवर्तित करने में खर्च आने वाली राशि से मिलरों की मदद करना था। सॉफ्ट लोन एक ऐसा लोन है, जो सब्सिडाइज्ड ब्याज दर पर दिया जाता है।
पीटीआई में प्रकाशित खबर के मुताबिक इथेनॉल इकाइयां स्थापित करने के लिए चीनी मिलों को अब तक लगभग 800 करोड़ रुपये का साफ्ट लोन दिया गया है। साफ्ट लोन पैकेज खाद्य मंत्रालय द्वारा लागू किया जा रहा है, जो आगे की प्रक्रिया के लिए बैंकों को पात्र ऋण आवेदकों की एक सूची प्रदान करता है।
मंत्रालय को कुल 418 आवेदन मिले थे, जिनमें से 328 आवेदकों को बैंकों से सॉफ्ट लोन लेने के लिए पात्र माना गया। खबरों के मुताबिक अब तक 16,482 करोड़ रुपये की ऋण राशि के साथ 328 आवेदनों को मंजूरी दे दी है। अब, बैंकों को इन अनुप्रयोगों को आगे की प्रक्रिया को करना होगा।
इथेनॉल संयंत्र लगाने वाले एक मिल मालिक ने कहा कि सरकारी योजना ठीक से नहीं चल पाई है। इस योजना को जून 2018 में लॉन्च किया गया था और अभी भी मंत्रालय आवेदनों की स्क्रीनिंग कर रहा है। इस गति से मिलों को योजना का लाभ नहीं हो सकता है। एक इथेनॉल इकाई स्थापित करने के लिए कम से कम 18 महीने लगते हैं।
उद्योग के आंकड़ों के अनुसार चीनी मिलों ने 2018-19 सत्र के 22 अक्टूबर तक तेल विपणन कंपनियों (ओएमसी) को 175 करोड़ लीटर इथेनॉल की आपूर्ति की है और पेट्रोल के साथ 5.2 प्रतिशत सम्मिश्रण करने में मदद की है। साफ्ट लोन की घोषणा मिलों की तरलता में सुधार, चीनी अधिशेष को कम करने और किसानों के गन्ना मूल्य बकाये की समय पर निकासी की सुविधा देने के लिए की गई थी।
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