कोलंबो : सांसद रवि करुणानायके ने श्रीलंका के चीनी उद्योग पर सरकार के बदलते रुख पर चिंता जताई है और चेतावनी दी है कि मौजूदा नीतिगत भ्रम किसानों, निवेशकों और अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुंचा रहा है। संसद में बोलते हुए, करुणानायके ने उद्योग मंत्री सुनील हंडुन्नत्थी के एक हालिया बयान का हवाला दिया, जिसमें उन्होंने स्वीकार किया था कि सरकारें प्रतिस्पर्धात्मक रूप से व्यवसाय नहीं चला सकतीं और उन्हें एक अनुकूल वातावरण बनाने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। करुणानायके ने तर्क दिया कि, यह मंत्री के पहले के दावे से एक महत्वपूर्ण बदलाव था कि श्रीलंका न केवल अपनी चीनी आवश्यकताओं को पूरा कर सकता है, बल्कि एशिया को निर्यात भी कर सकता है।
सांसद ने मंत्री से चीनी उद्योग पर एक श्वेत पत्र पेश करने का आग्रह किया, जिसमें उत्पादन लक्ष्य, आयात आवश्यकताएँ, आत्मनिर्भरता लक्ष्य, कराधान सुधार और एनपीपी सरकार का एकीकृत रुख शामिल हो। करुणानायके ने इस बात पर ज़ोर दिया कि, 2024 में श्रीलंका को लगभग 6,64,000 मीट्रिक टन चीनी की आवश्यकता थी, लेकिन देश ने केवल 81,000 मीट्रिक टन चीनी का उत्पादन किया, जो उसकी राष्ट्रीय माँग का बमुश्किल 12% था। शेष 5,83,000 मीट्रिक टन चीनी का आयात लगभग 30 करोड़ अमेरिकी डॉलर की लागत से करना पड़ा। करुणानायके ने ज़ोर देकर कहा कि, विदेशी निर्यातकों को इस स्थिति से फायदा हो रहा है, जबकि स्थानीय गन्ना किसान भुगतान में देरी, कम कीमतों और उच्च उत्पादन लागत से जूझ रहे हैं।
करुणानायके ने सवाल किया कि, क्या सरकार अब स्वीकार करती है कि उसकी पिछली निर्यात महत्वाकांक्षाएँ अवास्तविक थीं और उन्होंने उत्पादन लक्ष्यों, सरकारी चीनी मिलों के भविष्य और क्या इनका निजीकरण, आधुनिकीकरण या बंद किया जाएगा, सहित कई प्रमुख मुद्दों पर स्पष्टता की मांग की।सांसद ने सरकार की टैरिफ नीतियों पर भी जवाब माँगा, जिनके बारे में उनका दावा था कि वे घरेलू उत्पादन की तुलना में आयात को अनुचित रूप से तरजीह देती हैं। उन्होंने ऐसे सुधारों का आह्वान किया जो किसानों के लिए उचित मूल्य और उपभोक्ताओं के लिए सस्ती चीनी सुनिश्चित करें।