नई दिल्ली : राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एनसीपीसीआर) ने स्कूलों को अपने परिसर में ‘शुगर बोर्ड’ लगाने की सिफ़ारिश की है, जिन पर छात्रों को अत्यधिक चीनी के सेवन के जोखिमों के बारे में शिक्षित करने के लिए जानकारी प्रदर्शित की जानी चाहिए। यह कदम बच्चों में टाइप 2 मधुमेह के बढ़ते मामलों के बीच उठाया गया है। आयोग ने कहा कि, इन बोर्डों में आवश्यक जानकारी उपलब्ध होनी चाहिए, जिसमें अनुशंसित दैनिक चीनी सेवन, आमतौर पर खाए जाने वाले खाद्य पदार्थों (जंक फूड, कोल्ड ड्रिंक्स आदि जैसे अस्वास्थ्यकर भोजन) में चीनी की मात्रा, अधिक चीनी के सेवन से जुड़े स्वास्थ्य जोखिम और स्वस्थ आहार विकल्प शामिल हैं।
हाल ही में, स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय ने भी अत्यधिक सेवन के बारे में जागरूकता पैदा करने के लिए मंत्रालयों, कार्यालयों और सार्वजनिक संस्थानों में तेल और चीनी के बोर्ड लगाने का प्रस्ताव रखा है। एनसीपीसीआर की सिफारिश के बाद केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (सीबीएसई) के अंतर्गत आने वाले स्कूल शुगर बोर्ड लगा रहे हैं।सीबीएसई की तर्ज पर, भारत भर के कई अन्य राज्य बोर्ड के स्कूल भी इसी तरह के कदम उठा रहे हैं।
इस कदम ने विशेषज्ञों के बीच बहस छेड़ दी है…
एनएसआई (कानपुर) की निदेशक सीमा परोहा ने चीनी को विशेष रूप से लक्षित करने के पीछे के औचित्य पर सवाल उठाया। उन्होंने कहा कि, भारत प्रति व्यक्ति चीनी की खपत में सबसे कम देशों में से एक है, फिर भी इसे मधुमेह की राजधानी होने का संदिग्ध गौरव प्राप्त है। इससे पता चलता है कि, चीनी की खपत और मधुमेह के बीच कोई संबंध नहीं है।एक जैव रसायनज्ञ होने के नाते, मैं स्कूलों में शुगर बोर्ड लगाने के इस कदम का समर्थन नहीं करती। चीनी को अलग से बताना गलत है; सच तो यह है कि जब हमारे शरीर में कार्बोहाइड्रेट होते हैं, तो शरीर उसे ग्लूकोज में बदल देता है। खाद्य पिरामिड में सभी पोषक तत्व शरीर के लिए आवश्यक हैं। हमें यह समझना होगा कि संतुलित आहार कैसे लें। स्कूली पाठ्यक्रम में पोषण और संतुलित आहार को शामिल करने की आवश्यकता है।
महाराष्ट्र राज्य सहकारी चीनी कारखाना संघ के प्रबंध निदेशक संजय खताल ने कहा कि, यह मुद्दा आयोग के दायरे में नहीं आता है और न ही संयुक्त राष्ट्र चार्टर या एनसीपीसीआर द्वारा प्रदत्त कार्यों और शक्तियों के अंतर्गत आता है।उन्होंने कहा, आयोग के लिए और भी ज़रूरी मुद्दे हैं—जैसे शिक्षा में सरकारी निवेश में सुधार, पाठ्येतर गतिविधियों को बढ़ावा देना और नागरिक विज्ञान को पाठ्यक्रम में शामिल करना।
आंतरिक चिकित्सा और समग्र स्वास्थ्य विशेषज्ञ, डॉ. राजर्षि भट्टाचार्य ने एक संतुलित दृष्टिकोण प्रस्तुत किया। उन्होंने कहा कि नमक या वसा की तरह, चीनी का भी स्वस्थ आहार में एक स्थान है, लेकिन सही मात्रा और सही रूप में।बच्चों को रोजाना नहीं, बल्कि कभी-कभार मिठाई खाना सिखाना, भोजन के साथ एक स्वस्थ रिश्ता बनाने में मदद करता है।जीवन में संतुलन बनाने, नियमित व्यायाम और खेलकूद के साथ-साथ स्वस्थ खानपान की आदतों को बढ़ावा देने पर ज्यादा ध्यान दिया जाना चाहिए।