“उत्प्रवाह (एफ्लूएंट) शोधन इकाई का संचालन एवं उत्प्रवाह के विश्लेषण के लिए मानक प्रोटोकॉल” विषय पर तीन दिवसीय ऑनलाइन प्रशिक्षण सत्र का हुआ शुभारंभ

कानपूर: “उत्प्रवाह (एफ्लूएंट) शोधन इकाई का संचालन एवं उत्प्रवाह के विश्लेषण के लिए मानक प्रोटोकॉल” विषय पर आज तीन दिवसीय ऑनलाइन प्रशिक्षण सत्र का शुभारंभ किया गया। यह प्रशिक्षण कार्यक्रम केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की ओर से राष्ट्रीय शर्करा संस्थान मे आयोजित किया गया है जिसमे विभिन्न राज्यों के प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अधिकारी भाग ले रहे हैं। इस कार्यक्रम का उद्देश्य प्रशिक्षु अधिकारियों को “मानक उत्प्रवाह (एफ्लूएंट) संचालन प्रक्रिया” के संदर्भ मे अपेक्षित जानकारी देने के साथ-साथ उन्हे उन नवीन तकनीकों के बारे मे जागरूक करना है जिन्हे निकट भविष्य मे शर्करा उद्योग के द्वारा अपनाया जाना है।

प्रशिक्षण सत्र का शुभारंभ मेसर्स त्रिवेणी इंजीनियरिंग एंड इंडस्ट्रीज लिमिटेड के प्रबंध निदेशक श्री तरुण साहनी के द्वारा किया गया। उन्होने अपने सम्बोधन मे शर्करा उद्योग को ऐसे नवीन अल्प-लागत तकनीकों के विकास के लिए आह्वान किया जो पारंपरिक होने के साथ-साथ ताजे जल की खपत को कम करने वाले हों और जिन्हे अपनाने पर उत्प्रवाह भी केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के मानकों के अनुरूप हो। ईथनोल इंडस्ट्रीज तेजी से आगे आ रही है और भविष्य मे रु. 50,000 करोड़ के निवेश को देखते हुये शोधन इकाइयों का महत्व और बढ़ जाता है।

इस अवसर पर संस्थान के निदेशक प्रो. नरेंद्र मोहन ने उत्प्रवाह प्रबंधन पर व्यापक प्रकाश डालते हुये इस विषय पर वर्तमान परिदृश्य सभी के सामने रखा और उन्होने इस बात पर बल दिया कि शर्करा उद्योग एवं डिस्टलरियों के द्वारा उत्पादन इकाइयों मे “सर्वोत्तम उपलब्ध तकनीक (BAT)” को अपनाने पर ज़ोर देना चाहिए। उन्होने यह भी कहा कि इन तकनीकों को अपनाने से जहाँ चीनी-मिल उत्प्रवाह के शोधन के उपरांत समाज को शोधित जल की आपूर्ति करना संभव होगा, वहीं शीरा आधारित डिस्टलरी भी पोटाश समृद्ध उर्वरक तथा बॉयलर से प्राप्त अपशिष्ट राख़ से बने ईंट आदि बनाने मे सक्षम होंगे। उन्होने इस अवसर पर “स्प्रे-ड्राई” तकनीक पर भी प्रकाश डाला जिसके माध्यम से डिस्टलरियों मे स्पेण्ट-वाश को सुखाकर पोटाश समृद्ध पाउडर तैयार किया जाता है। उन्होने कहा कि ऐसे तकनीकों को अपनाने से जहाँ एक ओर हम केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के मानक को पाने मे सफल हो सकते हैं वहीं दूसरी ओर हमे अपशिष्ट से कई मूल्यवर्धित उत्पाद भी प्राप्त कर सकते हैं।

संस्थान के प्रो. डी स्वेन और डॉ. आशुतोष बाजपेयी ने भी इस अवसर पर चीनी कारखानों के द्वारा जल प्रबंधन और विभिन्न प्रकार के चीनी के उत्पादन और उनकी गुणवत्ता के बारे मे बताया। उन्होने बताया कि हमे जल और उत्प्रवाह प्रबंधन के लिए चीनी की गुणवत्ता का भी ध्यान रखना चाहिए क्योंकि अलग-अलग गुणवत्ता के चीनी के लिए अलग-अलग प्रक्रिया अपनाई जाती है। कार्यक्रम का संचालन जैव-रसायन विभाग की आचार्या डॉ. (श्रीमती) सीमा परोहा और शर्करा अभियांत्रिकी विभाग के सहायक आचार्य श्री अनूप कुमार कनौजिया के द्वारा किया गया।

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