नई दिल्ली : विदेश व्यापार महानिदेशालय की एक नई अधिसूचना के अनुसार, कुछ शर्तों के साथ टूटे चावल को अब 15 अक्टूबर तक निर्यात के लिए अनुमति दी जाएगी। शर्तों में यह शामिल है कि, जहां प्रारंभिक प्रतिबंध आदेश लागू होने से पहले जहाज पर टूटे चावल की लोडिंग शुरू हुई, जहां शिपिंग बिल दायर किया गया है और जहाज पहले ही भारतीय बंदरगाहों में बर्थ या आ चुके हैं और लंगर डाल चुके हैं और उनकी रोटेशन संख्या आवंटित की गई है, और जहां टूटे चावल की खेप सीमा शुल्क को सौंप दी गई है और उनके सिस्टम में पंजीकृत है।
आपको बता दे की, 9 सितंबर को, भारत ने तुरंत टूटे चावल के निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया है। निर्यात पर प्रतिबंध इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि ऐसा प्रतीत होता है कि इस खरीफ सीजन में धान के तहत कुल बोया गया क्षेत्र पिछले साल की तुलना में कम हो सकता है। इसका असर फसल की संभावनाओं के साथ-साथ आने वाले समय में कीमतों पर भी पड़ सकता है। खाद्य और सार्वजनिक वितरण विभाग के सचिव सुधांशु पांडे ने कुछ दिन पहले संवादाताओं से कहा था कि, निर्यात में असामान्य वृद्धि और घरेलू बाजारों में टूटे चावल की कम उपलब्धता ने केंद्र सरकार को अपने व्यापार पर प्रतिबंध लगाने के लिए प्रेरित किया।पांडे ने कहा कि टूटे चावल की कीमत जो लगभग 15-16 रुपये (प्रति किलो) थी, बढ़कर 22 रुपये हो गई और इसका निर्यात 3 गुना बढ़ गया। नतीजतन, टूटे हुए चावल न तो पोल्ट्री फीड के लिए उपलब्ध थे और न ही एथेनॉल निर्माण के लिए।
टूटे हुए चावल का व्यापक रूप से पोल्ट्री क्षेत्र में चारे के रूप में उपयोग किया जाता है। इस खरीफ सीजन में धान की खेती का रकबा पिछले सीजन की तुलना में लगभग 5-6 फीसदी कम है। खरीफ की फसलें ज्यादातर मानसून-जून और जुलाई के दौरान बोई जाती हैं, और उपज अक्टूबर और नवंबर के दौरान काटी जाती है। बुवाई क्षेत्र में गिरावट का प्राथमिक कारण जून के महीने में मानसून की धीमी प्रगति और देश के कुछ प्रमुख क्षेत्रों में जुलाई में इसका असमान प्रसार हो सकता है। सचिव पांडे ने आगे कहा था कि , भारत का खरीफ चावल उत्पादन, सबसे खराब स्थिति में, 10-12 मिलियन टन तक गिर सकता है।