एकमुश्त एफआरपी से चीनी उद्योग पर संकट

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कोल्हापुर:चीनी मंडी 

एकमुश्त एफआरपी मामले ने एक बड़े पैमाने पर मिलों और किसानों की नकदी नाकाबंदी हो रही है। स्वाभिमानी शेतकरी संगठन ने गतिरोध तोड़ने के लिए एक सड़क और कानूनी लड़ाई शुरू की हैं। जो मिलें एकमुश्त एफआरपी नही दे सकती है, वह शेष एफआरपी राशि की जगह किसानों को चीनी दे, स्वाभिमानी शेतकरी संघठन ने ऐसी मांग रखी थी। मिलर्स ने उनके मांग पर सहमती जताई, लेकिन चीनी लेकर हम क्या करें ? ऐसा सवाल किसान उठा रहा हैं। एफआरपी बकाया मुद्दे पर राज्य सरकार भी कोई ठोस कदम नही उठा रही है, इसीलिए एफआरपी मुद्दे पर ग्रामीण इलाकों में फिर एक बार राजनीती गरमाने के संकेत मिल रहे हैं।

स्वाभिमानी शेतकारी संगठन के नेता, सांसद राजू शेट्टी केआन्दोलन के बाद चीनी आयुक्त कार्यालय द्वारा चीनी मिलों की संपती को जब्त करने का आदेश दिया गया था। मिलों ने किसान के खाते में प्रति टन 2300 रुपये जमा किए हैं। मिलों ने अभी तक लगभग 500 से 700 रुपये का एफआरपी बकाया नहीं दिया है। यदि एक एकड़ में 40 टन गन्ने का औसत उत्पादन होता है, तो शेष एफआरपी राशि 20 हजार से 28 हजार रुपये होती है। इस राशि से किसान को 650 से 1,000 किलोग्राम चीनी स्वीकार करनी पड़ सकती है। मिलों द्वारा स्वीकृत चीनी को कैसे बेचना है, इसका किसानों को विपणन का अनुभव नही है। दूसरी ओर, मुंबई, दिल्ली के व्यापारियों ने अनुमानित रूप से 3000 रुपये के अनुसार चीनी खरीदने की इच्छा व्यक्त की है। स्वाभिमानी ने आरोप लगाया की, मिलें शेष एफआरपी के बदले चीनी चाहिए की पैसे, ऐसे फॉर्म भरने के लिए  किसानों पर दबाव डाला जा रहा है, जो  एक बड़ी दुविधा है।  

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SOURCEChiniMandi

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