प्रदूषण से बचाव का विकल्प: बगास से अब बनाई जा रही है डिस्पोजल क्राकरी

शामली: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने स्वच्छता अभियान के अंतगर्त 2 अक्तूबर, 2019 से पूरे देश में प्लास्टिक पर प्रतिबंध लगाने के एलान से डिस्पोजल क्राकरी का कारोबार बंदी के कगार पर है। ऐसे में शामली के एक उद्यमी संदीप गर्ग ने इसका बेहतर विकल्प ढूंढा है। उसने गन्ने की बगास से डिस्पोजल क्राकरी बनाने का प्लांट लगाया है। श्री गर्ग ने बताया कि उनकी शामली इंडस्ट्रीयल एरिया में 26 साल से लकड़ी की चम्मच बनाने की फैक्टरी थी। उन्होंने कहा कि जब प्लास्टिक पर प्रतिबंध के ऐलान के बाद डिस्पोजल क्राकरी की फैक्टरियां बंद होने लगी तो मैंने इंटरनेट पर सर्च करके उसके किसी नए विकल्प को तलाशना शुरू किया। इसी दौरान उन्हें पता चला की कि बगास की लुगदी से डिस्पोजल क्राकरी बनाई जा सकती है। इसकी मशीनरी भी मार्केट में उपलब्ध हैं और उत्तराखंड के लाल कुंआ में इस लुगदी का मार्केट भी हैं। ये लुगदी पेपर मिलों में काम आती है।

श्री गर्ग ने इसके बाद क्राकरी बनाने के लिए प्लांट लगाने का मन बनाया। दिल्ली से इसकी मशीनें खरीदी और उत्तराखंड के लाल कुंआ से खोई की लुगदी की सीटें मंगाई और पिछले महीने ही ये प्लांट शुरू कर दिया। इस प्लांट में एक महीने में करीब 10 से 12 लाख प्लेटें बनाई जा सकती हैं। गर्ग का दावा है कि देश में इस तरह के मुश्किल से 10-15 प्लांट होंगे।

बगास की लुगदी से तैयार ये क्राकरी वैसे तो थोड़ी महंगी हैं लेकिन सबसे बड़ी बात यह है कि इनसे प्रदूषण नहीं होगा और ये 10 से 15 दिन में खुद नष्ट हो जाएंगी।

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