गन्ने की सुखी पती न जलाए: कृषि विभाग की किसानों से अपील

पुणे : प्रदेश में इस समय गन्ना सीजन चल रहा है। प्रदेश के विभिन्न जिलों में फैक्ट्रियां किसानों का गन्ना काट रही हैं। इसी बीच गन्ना कारखाने में जाने के बाद किसानों ने गन्ने की सुखी पती जला रहें है। हालांकि पुणे जिले के पुणे कृषि विभाग की ओर से सुखी पती को आग नहीं लगाने की अपील की गई है। हालांकि, सुखी पती नहीं जलाने से किसानों को वास्तव में क्या फायदा होता है। आइए देखते हैं इससे जुड़ी जानकारी…

इस बारे में शिरूर तालुका कृषि अधिकारी सिद्धेश ढवळे से संपर्क किया गया। इस पर उन्होंने विस्तृत जानकारी भी दी। शिरूर तालुका में औसतन 30 हजार हेक्टेयर में गन्ने की खेती की जाती है। ढवळे ने कहा कि, हम किसानों को फसल प्रबंधन के महत्व के बारे में समझा रहे हैं। गन्ने की कटाई के बाद बचे सुखी पती सड़ने से मिट्टी की गुणवत्ता में सुधार होता है और मिट्टी में जैविक कार्बन की मात्रा बढ़ जाती है। मृदा स्वास्थ्य एक महत्वपूर्ण मुद्दा बन गया है। ढवळे ने कहा कि, पिछले वर्षों की भांति इस वर्ष भी कृषि विभाग के माध्यम से गन्ना धान प्रबंधन अभियान चलाया गया है। पिछले साल तालुका में करीब 4 हजार एकड़ जमीन में सुखी पतीसड़ने से से किसानों को लाभ हुआ है और आय में वृद्धि हुई है। ढवळे ने बताया कि, कृषि विभाग के महाडीबीटी पोर्टल पर पाचट कुटी यंत्र के लिए सब्सिडी भी दी जा रही है।

सुखी पती न जलाने के क्या फायदे हैं?

सुखी पती / पाचट प्रबंधन के संबंध में एबीपी माझा ने शिरूर तालुका के कृषि सहायक जयवंत भगत से संपर्क किया। इस अवसर पर उन्होंने पाचट प्रबंधन के लाभों के बारे में बताया। लकड़ी जलाने के कई नुकसान होते हैं। लकड़ी जलाने से वातावरण का तापमान बढ़ जाता है। भगत ने बताया कि, मिट्टी का तापमान बढ़ने से जीवाणु नष्ट हो रहे हैं। हालांकि, सुखी पती रखने के कई फायदे हैं। मल्चिंग से मिट्टी की गुणवत्ता बढ़ती है। जीवाणुओं की संख्या में वृद्धि के कारण गन्ने के उत्पादन में वृद्धि हुई है। मिट्टी में जीवाणुओं की संख्या बढ़ने से भविष्य में बंजर होने वाली भूमि बच जाती है। नाइट्रोजन, स्प्राउट, जैविक कार्ब, पलाश मिलता है। भगत ने कहा कि रासायनिक खाद का खर्चा बच रहा है।

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