कर्नाटक में सूखे जैसी स्थिति: ना ही सिर्फ फसल, चारा पर भी है संकट

मांड्या : जिले के अल्लापटना में कावेरी नहर से 100 मीटर की दूरी पर नारियल के पेड़ हैं जिनकी पत्तियां नीचे की ओर मुड़ी हुई है। किसान दर्शन गौड़ा कहते हैं कि, नारियल के पेड़ बिना पानी के लगभग दो से तीन महीने तक जीवित रह सकते है। उसके बाद, वे मर जाएंगे क्योंकि पानी की कमी ने उन्हें सूली रोग (विल्ट रोग) की चपेट में ले लिया है। इन पेड़ों को इतनी ऊंचाई तक बढ़ने में 30-40 साल लग गए। उन्होंने कहा, ज्यादातर लोग बोरवेल के पानी पर निर्भर है। भले ही धान और गन्ने की खेती घरेलू आय का अभिन्न अंग है, लेकिन इस साल (राज्य के सबसे उपजाऊ हिस्सों में से एक) में बड़े पैमाने पर फसल बर्बाद हो सकती है।

डेकन हेराल्ड में प्रकाशित खबर के मुताबिक, कर्नाटक में कावेरी और तुंगभद्रा नदियों के कमांड क्षेत्र में 4.22 लाख हेक्टेयर भूमि पर धान की खेती होती थी। हालांकि, इस खरीफ सीजन में, पिछले महीने तक केवल 3.34 लाख हेक्टेयर में बुआई हुई है। अल्लापटना की तरह, कावेरी बेसिन के गांव मानसून की कमी और कृष्णा राजा सागर (केआरएस) बांध से सिंचाई के लिए सीमित पानी की आपूर्ति से जूझ रहे हैं। कावेरी बेसिन के गाँव गन्ना, धान, रागी, टमाटर, केला और नारियल जैसी विभिन्न प्रकार की फसलों का घर हैं।

केआरएस, काबिनी और हेमवती जलाशयों का पानी मांड्या, मैसूर और हसन जिलों में कृषि के लिए अभिन्न अंग है। हालाँकि, खेत तालाबों के निर्माण और लिफ्ट सिंचाई के माध्यम से गाँव की झीलों को भरकर कावेरी नदी और उसकी सहायक नदियों पर इस निर्भरता को पूरा करने के लिए अतीत में प्रयास किए गए हैं, लेकिन इन प्रयासों का अस्तित्व मानसून की नियमितता पर निर्भर करता है।

डेकन हेराल्ड के साथ बातचीत में, अल्लापटना की खेतिहर मजदूर रत्नम्मा ने कहा की, कुछ किसानों के पास इन तालाबों में थोड़ा पानी बचा है, और वे इसे पशुधन के लिए संरक्षित कर रहे है।रत्नम्मा बताती हैं कि, फसलों के अस्तित्व के अलावा, लगातार पानी की आपूर्ति पर कई चीजें निर्भर है। खेतों के किनारे घास लगी हुई है, विशेष रूप से मवेशियों के लिए खेती की जाती है। यह घास एक या दो महीने में सूख जाएगी। जिसके बाद, मवेशियों को भी चारा नहीं मिलेगा।

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