एथेनॉल नीति के कारण गन्ना भुगतान कम करने में मिली मदद

नई दिल्ली : केंद्र सरकार ने एथेनॉल मिश्रण कार्यक्रम का बचाव करते हुए कहा है कि, इससे चीनी की कीमतों को स्थिर करने में मदद मिली है, गन्ना बकाया भुगतान पर चिंता कम हुई है और कच्चे तेल के आयात में कटौती करने में मदद मिली है।

द हिन्दू बिजनेस लाइन में प्रकाशित खबर के मुताबिक, खाद्य मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, पिछले 12 वर्षों में, गन्ने के क्षेत्रफल में बहुत कम वृद्धि हुई है, जबकि बेहतर किस्म विकसित करने के लिए भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) के वैज्ञानिकों की बदौलत इसका उत्पादन काफी बढ़ गया है। उन्होंने कहा कि, चीनी क्षेत्र में अब कोई संकट नहीं है क्योंकि सरकार समान स्तर के रकबे से उत्पन्न अतिरिक्त उत्पादन का प्रबंधन करने में सक्षम है।

उन्होंने कहा कि, पहली प्राथमिकता घरेलू चीनी मांग को पूरा करना रहेगी, जो लगभग 275 लाख टन (एलटी) के आसपास अनुमानित है, जिसके बाद निर्यात पर एथेनॉल को प्रमुखता दी जाएगी। उन्होंने कहा, निर्यात की अनुमति देने की कोई जल्दी नहीं है और अगर गन्ने की अधिक उपलब्धता होगी, तो सरकार इस बारे में सोच सकती है।

कृषि मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार, गन्ने का रकबा 2011-12 के 50.38 लाख हेक्टेयर से 2.7 प्रतिशत बढ़कर 2021-22 में 51.75 लाख हेक्टेयर हो गया है, जबकि गन्ना उत्पादन 3,610.36 से बढ़कर 4,394.25 लाख टन हो गया है। चीनी उत्पादन के मामले में भी, 2011-12 और 2021-22 के बीच 263.42 लाख टन से 36 प्रतिशत से अधिक की वृद्धि होकर 357.6 लाख टन हो गई। अधिकारी ने यह भी बताया कि, गन्ना बकाया भी एथेनॉल का राजस्व बढ़ने के कारण काफी हद तक कम हो गया है, जिससे चीनी मिलों को गन्ना भुगतान करना आसान हो गया है। पहले की तुलना में कम समय में भुगतान किया जा रहा है।

श्री रेणुका शुगर्स के कार्यकारी अध्यक्ष अतुल चतुर्वेदी ने कहा, सूक्ष्म सिंचाई को बढ़ावा देने और जागरूकता बढ़ने के साथ, गन्ने में पानी की खपत 10 साल पहले की तुलना में कम हो रही है।

 

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