पणजी: संयुक्त किसान मोर्चा द्वारा बुलाए गए भारत बंद का तो गोवा में कोई असर नहीं पड़ा, लेकिन स्थानीय गन्ना किसानों की दुर्दशा पर विपक्षी दलों द्वारा उठाये गये सवालों ने राज्य विधानसभा को हिलाकर रख दिया। आज तक सदन ने ड्रग्स, पर्यटन, खनन, आदि से संबंधित मुद्दों पर बार-बार व्यवधान देखा है, लेकिन शुक्रवार की व्यवधान राज्य में खेती-संबंधी मुद्दे पर ध्यान केंद्रित किए जाने का एक दुर्लभ उदाहरण देखा गया। गोवा सरकार पर दक्षिण गोवा के गन्ना किसानों के बकाया भुगतान का आरोप लगाते हुए और संजीवनी चीनी मिल को फिर से शुरू करने में मुख्यमंत्री प्रमोद सावंत के नेतृत्व वाले प्रशासन की असमर्थता के चलते विपक्षी सदस्य दो बार सदन के वेल में उतरे। जिसके चलते स्पीकर राजेश पाटेकर को शुक्रवार को दो बार कार्यवाही स्थगित करनी पड़ी।
पूर्व उपमुख्यमंत्री और गोवा फॉरवर्ड पार्टी के विधायक विजई सरदेसाई ने प्रश्नकाल के दौरान कहा, इस सरकार ने किसानों का न केवल भुगतान रोक दिया है, बल्कि मिल को फिर से शुरू करने के लिए कोई कदम नहीं उठाया है। 1972 में राज्य के पहले मुख्यमंत्री दयानंद बंदोदकर के शासनकाल के दौरान मिल को एक सहकारी उद्यम के रूप में स्थापित किया गया था। हाल के वर्षों में हालांकि, सरकारी कुप्रबंधन और गन्ने के पर्याप्त स्थानीय उत्पादन की कमी के कारण मिल का वित्तीय स्वास्थ्य बिगड़ गया, जो अंततः 2020 में बंद हो गई। मिल बंद होने से 800 से अधिक गन्ना किसानों के भविष्य को खतरे में डाल दिया है, जो संजीवनी मिल को गन्ना भेजते थे।
2018-19 में मिल में लगभग 35,346 टन गन्ने की पेराई की गई थी, जिसमें से लगभग आधा गन्ना राज्य के बाहर से खरीदा गया था और अन्य आधा स्थानीय किसानों से। गोवा के कृषि मंत्री उपमुख्यमंत्री चंद्रकांत कावलेकर का दावा किया कि, उनका बकाया जारी करने में देरी सरकार के कारण नही, बल्कि गन्ना किसानों के दो निकायों के बीच मतभेद के कारण हुई है। कावलेकर ने कहा, हमने किसानों के भुगतान को रोक नहीं लिया है। हमने दो समितियों को चर्चा करने और एक फार्मूला प्रस्तुत करने के लिए कहा।