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जागरण संवाददाता, कानपुर : देश भर में गंगा बेसिन में चल रही चीनी मिलों के लिए बनाए गए नए मानकों के चार्टर पर सहमति की मुहर लग चुकी है। अब तय हो गया है कि सभी चीनी मिलों में शुद्ध जल का दुरुपयोग रोकने और उत्प्रवाह पर नियंत्रण के लिए फ्लोमीटर लगाना अनिवार्य होगा। इसके साथ ही पूर्व में केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा निर्धारित प्रदूषण के मानकों में भी बदलाव किया गया है।
गंगा बेसिन में 88 चीनी मिलें संचालित हैं। इनसे निकलने वाले उत्प्रवाह से नदी में काफी प्रदूषण होता है। इस पर नियंत्रण के प्रयास में ही भारत सरकार द्वारा राष्ट्रीय शर्करा संस्थान के निदेशक प्रो. नरेंद्र मोहन की अध्यक्षता में समिति गठित की। इसमें आइआइटी, बनारस ¨हदू विवि, केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और प्रतिष्ठित चीनी मिलों के विशेषज्ञ शामिल थे। समिति ने नए मानकों का चार्टर तैयार किया, जिस पर सुझाव और विमर्श के लिए उप्र, उत्तराखंड और बिहार की चीनी मिलों के प्रतिनिधियों के साथ शुक्रवार को एनएसआइ में बैठक हुई। उनके सामने चार्टर के बिंदु रखते हुए प्रो. नरेंद्र मोहन ने बताया कि वर्तमान में चीनी मिलों से निकलने वाले दूषित जल के संदर्भ में प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा केवल एक ही प्रकार के मानक निर्धारित किए गए हैं। जबकि इकाइयां भिन्न प्रकार की चीनी जैसे प्लांटेशन व्हाइट शुगर, रिफाइंड शुगर आदि का निर्माण करती हैं। लिहाजा, इकाइयों को चार श्रेणियों में बांटा गया है। उनके अनुसार अलग-अलग मानक निर्धारित किए हैं। हालांकि शुद्ध जल के अधिक प्रयोग और उत्प्रवाह नियंत्रण के लिए फ्लोमीटर सभी इकाइयों को लगाने होंगे। बैठक में केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के एडीशनल डायरेक्टर एके विद्यार्थी, एनएसआइ के चीफ डिजाइन इंजीनियर जेपी श्रीवास्तव और बसंत दादा शुगर इंस्टीट्यूट पुणे के डॉ. आरबी दानी भी उपस्थित थे।
चार्टर के कुछ प्रमुख बिंदु
-वर्तमान में प्लांटेशन व्हाइट शुगर बनाने वाली चीनी मिलें 200 लीटर प्रति टन गन्ने की दर से दूषित जल मिल के बाहर भेज सकती हैं। इन मानकों का कड़ा करते हुए इस मात्रा को घटा कर सितंबर 2018 तक 180 लीटर और मार्च 2019 तक 160 लीटर प्रति टन गन्ना करनी होगी।
-ताजे पानी की खपत को सितंबर 2018 तक 50 लीटर प्रति टन गन्ना और मार्च 2019 तक 30 लीटर प्रति टन गन्ना लाना होगा।
– इकाइयों में कंडेनसेट पॉलिशिंग यूनिट, कूलिंग टॉवर लगाने होंगे।
-प्लांटेशन व्हाइट शुगन बनाने वाली मिलों को ब्राइन रिकवरी सिस्टम लगाना होगा।