भारत में उच्च घनत्व वाली खेती पर्यावरण के लिए खतरा: कृषि विशेषज्ञ

प्रसिद्ध भारतीय कृषि विशेषज्ञ देविंदर के अनुसार, भारत में उच्च घनत्व वाली खेती (High-density farming) अपने पर्यावरण के लिए खतरा पैदा कर रही है क्योंकि मिट्टी के पोषक तत्व बहुत तेजी से निकाले जा रहे हैं। उन्होंने यह भी कहा की, मेरा मानना है कि उच्च घनत्व वाली खेती को बढ़ावा देने से आने वाले समय में पर्यावरण को काफी नुकसान होने वाला है। मैं जहां भी जाता हूं, श्रीनगर में, यहां हिमाचल में या तमिलनाडु में, सिर्फ उच्च घनत्व वाली खेती को बढ़ावा दिया जा रहा है।

उच्च घनत्व वाली खेती से पर्यावरण को होने वाले खतरों के पर चर्चा करते हुए उन्होंने पश्चिम की नकल करने के बजाय खेती के स्थानीय तरीके का उपयोग करने का आग्रह किया।

शर्मा ने आगे कहा की, मुझे लगता है कि कृषि वैज्ञानिकों को यूरोप और पश्चिम की नक़ल करने के बजाय स्थानीय और देश की मांगों पर ध्यान देना चाहिए। उन्होंने कहा की मै हैरान हु इस बात से, और ऐसा ही चलता रहा तो एक समय पर ऐसे स्तिथि होगी जिसे हम ठीक कर पाना बहुत मुश्किल होगा, अभी भी समय है इसलिए हमे इसे रोकने की जरूरत है।

उन्होंने कहा कि जैविक कृषि पद्धति से हिमाचल जैसे राज्यों में पारिस्थितिकी और जैव विविधता को संरक्षित करने की भी आवश्यकता है और खेती में रसायनों के उपयोग को कम करने के लिए कृषि और बागवानी संस्थानों में और अधिक रिसर्च करने की जरूरत है।

जहां तक हम जैविक खेती की बात कर रहे हैं तो रिसर्च की बहुत जरूरत है। मैं अब तक उम्मीद कर रहा था कि राज्य के दो विश्वविद्यालय, पालमपुर और सोलन कृषि और बागवानी विश्वविद्यालय जो जैविक खेती को बढ़ावा देने के लिए रिसर्च करेंगे, जो व्यावहारिक रूप से अपने कार्य करने में असमर्थ साबित हो रहे है । हिमाचल प्रदेश में विश्व की 1 प्रतिशत जैव विविधता ह, जैव विविधता को बनाए रखने के लिए आपको रसायनों के उपयोग को कम करना होगा। साथ ही उन्होंने कहा की हम सरकार की मदद से वैज्ञानिकों से एक नए और विशेष मॉडल को बनाने की उम्मीद कर रहे हैं।

उन्होंने कहा कि भारत की खेती अब खतरे में है और कृषि उत्पादों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य बनाने की आवश्यकता है।

शर्मा ने कहा की,“हम सब यह जानते हैं कि न सिर्फ उत्तर-पश्चिमी क्षेत्रों में खेती पर खतरा बना हुआ है , बल्कि सभी राज्य में किसान अपनी उपज को सड़क पर फेंक रहे हैं और जिसकी शुरुआत महाराष्ट्र से हुई और फिर प्याज की कीमतें 25 पैसे प्रति किलोग्राम तक गिरने के कारण मध्य प्रदेश में भी ऐसा ही कुछ देखने को मिला। छत्तीसगढ़ में किसानों ने भिंडी और लहसुन को नष्ट कर दिया। साथ ही, टमाटर और शिमला मिर्च की कीमते भी कम हो गई है।

उन्होंने जलवायु परिवर्तन के कारण कृषि बाजार में स्थिरता से सीखने और न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) की गारंटी देने की सलाह दी है।

“क्या किसी देश ने कभी इस बात पर विचार किया है कि उत्पाद नष्ट होने के बाद एक किसान कैसे जीता है? क्रेडिट कार्ड पर 20 प्रतिशत टैक्स लगाने को लेकर हंगामा हुआ, किंतु खेती की किसी को कोई चिंता नहीं है। शर्मा ने कहा कि सर्कार को न्यूनतम समर्थन मूल्य(MSP) को किसानों का कानूनी अधिकार बनाना चाहिए ।

उन्होंने कहा कि भारत में दो-तीन बदलाव करने की आवश्यकता है। सबसे पहले, व्यापार को विनियमित करने की और किसानों को कम से कम उनकी उपज के निवेश की एक सम्मानजनक लागत मिलनी चाहिए। भारत में बाजारों द्वारा कृषि उपज के लिए 900 प्रतिशत से 2000 प्रतिशत कमीशन लिया जाता है।

“व्यापार को विनियमित करने की आवश्यकता है और अधिकतम खुदरा मूल्य तय करने की आवश्यकता है। हिमाचल प्रदेश राज्य में लागू वृक्षारोपण-संचालित अर्थव्यवस्था को मजबूत करने के लिए, राज्य और केंद्र सरकार दोनों को बड़ी भूमिका निभाने की जरूरत है। देविंदर शर्मा ने कहा कि केंद्र सरकार ने हाल ही में सेब के आयात पर शुल्क के रूप में 50 प्रतिशत टैक्स लगाया है और हम चाहते हैं कि इसे और बढ़ाया जाए ताकि सस्ते आयातित सेब भारतीय सेबों को प्रभावित न कर सके।

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