प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में केंद्र सरकार आत्मनिर्भर भारत बनाने के लिए प्रयासरत है। इसी के हिस्से के रूप में तिलहन व दलहन जैसी सीमित उपज वाली वस्तुओं के उत्पादन को बढ़ाने के लिए कई राष्ट्रीय कार्यक्रमों को लागू कर रही है। खाद्य सुरक्षा को बनाए रखना, आयात पर निर्भरता कम करना और कृषि निर्यात को बढ़ाना सरकार की रणनीति के प्रमुख स्तंभ हैं। उच्च उपज वाली किस्मों (एचवाईवी) के गुणवत्तापूर्ण बीजों की समय पर आपूर्ति, निवेश, नवीनतम उत्पादन तकनीकें, ऋण, फसल बीमा, सूक्ष्म सिंचाई एवं फसल कटाई के बाद की सुविधाएं कृषि पैदावार तथा उत्पादकता बढ़ाने के लिए किए गए ऐसे ही कुछ प्रमुख उपाय हैं। इन सभी हस्तक्षेपों के कारण इस वर्ष रबी फसलों के अंतर्गत आने वाले बुवाई क्षेत्र में भारी वृद्धि हुई है।
फसल सत्र की शुरुआत से ही रबी की बुवाई पर नजर रखी जा रही थी और 3 फरवरी 2023 को आए अंतिम आंकड़े से पता चलता है कि रबी फसलों की बुवाई में तेजी सीजन के अंत तक जारी रही है। पिछले वर्ष (2021-22) और सामान्य बोए गए क्षेत्र (पिछले 5 वर्षों का औसत क्षेत्र) के साथ तुलना की जाती है। रबी फसलों के तहत बोया गया कुल क्षेत्रफल 2021-22 में 697.98 लाख हेक्टेयर से 3.25 प्रतिशत बढ़कर 2022-23 में 720.68 लाख हेक्टेयर हो गया है। यह 2021-22 की इसी अवधि में हुई बीजों की बुआई की तुलना में इस वर्ष 22.71 लाख हेक्टेयर अधिक है। सामान्य बोए गए क्षेत्र की तुलना में, 633.80 से 720.68 लाख हेक्टेयर तक 13.71 प्रतिशत की वृद्धि हुई है।
सभी फसलों के क्षेत्र में बढ़त हुई है, लेकिन सर्वाधिक तेजी चावल में दर्ज की गई है। सभी रबी फसलों में 22.71 लाख हेक्टेयर में वृद्धि हुई है। चावल के क्षेत्र में 2021-22 में 35.05 लाख हेक्टेयर से 2022-23 में 46.25 लाख हेक्टेयर तक 11.20 लाख हेक्टेयर की बढ़ोतरी हुई है। हालांकि, यह 47.71 लाख हेक्टेयर के सामान्य बुवाई क्षेत्र से कुछ कम है। चावल के तहत क्षेत्र में अधिकतम वृद्धि तेलंगाना और पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों में है। चावल की उपज वाले इलाकों को कम पानी की खपत वाली अन्य तिलहनों, दलहनों तथा पोषक अनाज वाली फसलों की ओर प्रोत्साहित किया जा रहा है।
केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री श्री नरेन्द्र सिंह तोमर ने रबी फसलों की खेती में पर्याप्त वृद्धि की सराहना करते हुए कहा है कि यह हमारे मेहनतकश किसान भाइयों एवं बहनों, कृषि वैज्ञानिकों और मोदी सरकार की किसान हितैषी नीतियों के संयुक्त प्रयासों का परिणाम है। खाद्य तेलों में आयात निर्भरता को कम करने के लिए भारत सरकार का पूरा ध्यान तिलहन उत्पादन बढ़ाने पर है। 2021-22 में देश को 1.41 लाख करोड़ रुपए की लागत से 142 लाख टन खाद्य तेलों का आयात करना पड़ा था। तिलहन पर नए सिरे से ध्यान केंद्रित करने के कारण तिलहन के तहत आने वाला क्षेत्र 2021-22 के दौरान 102.36 लाख हेक्टेयर से 7.31प्रतिशत बढ़कर इस वर्ष 109.84 लाख हेक्टेयर तक हो गया है। यह 78.81 लाख हेक्टेयर के सामान्य बोए गए क्षेत्र की तुलना में 31.03 लाख हेक्टेयर की उच्चतम बढ़त है। 7.31 प्रतिशत की दर से तिलहन के तहत क्षेत्र में तेजी सभी फसलों में एक साथ 3.25 प्रतिशत की वृद्धि दर के दोगुने से भी अधिक है। तिलहन के क्षेत्र में बड़े विस्तार के लिए प्रमुख रूप से योगदान राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ का है।
इस रबी सीजन में तिलहन का क्षेत्र विस्तारित करने में सफेद सरसों और काली सरसों का सर्वाधिक योगदान रहा है। सरसों का क्षेत्रफल 2021-22 के 91.25 लाख हेक्टेयर से 6.77 लाख हेक्टेयर बढ़कर 2022-23 में 98.02 लाख हेक्टेयर हो गया। इस प्रकार, 7.49 लाख हेक्टेयर में तिलहन, सफेद सरसों और काली सरसों के क्षेत्र में अकेले 6.44 लाख हेक्टेयर की बढ़ोतरी हुई है। सफेद सरसों और काली सरसों की खेती के तहत लाया गया क्षेत्र 63.46 लाख हेक्टेयर के सामान्य बोए गए क्षेत्र की तुलना में 54.51 प्रतिशत अधिक रहा है। विगत 2 वर्षों से विशेष सरसों मिशन के क्रियान्वयन से प्रमुख क्षेत्रों में विस्तार हुआ है। रबी 2022-23 के दौरान, राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन-तिलहन के तहत 18 राज्यों के 301 जिलों में 20 क्विंटल प्रति हेक्टेयर से अधिक उपज क्षमता वाले एचवाईवी के 26.50 लाख बीज मिनी किट किसानों को वितरित किए गए। 2500-4000 क्विंटल प्रति हेक्टेयर की सीमा में उपज क्षमता वाली नवीनतम किस्मों के बीजों को बांटा गया था। इससे बढ़त वाले क्षेत्र तथा उत्पादकता तिलहन उत्पादन में भारी उछाल आएगी और आयातित खाद्य तेलों की मांग में कमी आएगी।
इन जिंसों में देश को आत्मनिर्भर बनाने पर दलहन उत्पादन पर ध्यान केंद्रित किया जा रहा है। राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन के तहत विशेष कार्यक्रम (एनएफएसएम ‘टीएमयू370’) अच्छे बीज तथा तकनीकी हस्तक्षेप की कमी के कारण दलहन की राज्य औसत उपज से कम वाले 370 जिलों की उत्पादकता बढ़ाने के उद्देश्य से शुरू किया गया है। दलहन का क्षेत्रफल 0.56 लाख हेक्टेयर वृद्धि के साथ 167.31 लाख हेक्टेयर से बढ़कर 167.86 लाख हेक्टेयर हो गया है। दलहन के रकबे में मूंग और मसूर की बढ़त हुई है। ‘टीएमयू370’ के तहत किसानों को मसूर के लिए लगभग 4.04 लाख बीज मिनी किट एचवाईवी का निःशुल्क वितरण किये गए। महाराष्ट्र, ओडिशा, राजस्थान और कर्नाटक जैसे राज्यों ने दलहन की खेती के तहत विस्तार वाले क्षेत्र में अग्रणी भूमिका निभाई है।
संयुक्त राष्ट्र महासभा ने वर्ष 2023 को मोटे अनाज का अंतर्राष्ट्रीय वर्ष घोषित किया है और भारत इस आयोजन को बड़े पैमाने पर भुनाने में सबसे आगे है। यह मोटे अनाज के महत्व, टिकाऊ कृषि में इसकी भूमिका और स्मार्ट तथा सुपर फूड के रूप में इसके लाभों के बारे में दुनिया भर में जागरूकता पैदा करने में सहायता करेगा। पूरे विश्व में मोटे अनाज की बढ़ती मांग को पूरा करने के लिए सरकार 14 राज्यों के 212 जिलों में राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन (एनएफएमएस) कार्यक्रम के एनएफएसएम-पोषक अनाज घटक के माध्यम से मोटे अनाज उत्पादन को बढ़ावा दे रही है। मोटे अनाज के साथ-साथ पोषक अनाजों की खेती के तहत क्षेत्र में 2.08 लाख हेक्टेयर की वृद्धि देखी गई है, जो 2021-22 में 51.42 लाख हेक्टेयर से बढ़कर 2022-23 में 53.49 लाख हेक्टेयर हो गई। भारत मोटे अनाज के उत्पादन के लिए वैश्विक हब बनने की ओर अग्रसर है। कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय सतत उत्पादन को बढ़ावा देने के अलावा उच्च खपत, विकासशील बाजारों तथा मूल्य श्रृंखला के लिए जागरूकता पैदा कर रहा है और अनुसंधान व विकास गतिविधियों को वित्तपोषित कर रहा है। मोटे अनाज के तहत बढ़ते क्षेत्र में तेलंगाना, राजस्थान, बिहार तथा उत्तर प्रदेश सबसे आगे हैं।
सरकार ने आत्मनिर्भर भारत के हिस्से के रूप में उन क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित करते हुए सभी फसलों की उत्पादकता बढ़ाने पर जोर दिया है, जहां पर तिलहन एवं दलहन और मोटे अनाज जैसे महंगे आयात के माध्यम से मांग पूरी की जाती है, जिनकी मांग मोटे अनाज के अंतर्राष्ट्रीय वर्ष के उत्सव के बाद बढ़ जाएगी। इसके लिए किसानों को प्रौद्योगिकी सहायता और महत्वपूर्ण इनपुट्स के साथ एचवाईवी के मुफ्त बीज मिनी किट प्रदान किए जाते हैं। इसके साथ ही किसानों को आसान ऋण उपलब्ध कराया जाता है, मौसम की क्षति के लिए बीमा प्रदान किया जाता है, उनकी उपज के लिए लाभकारी मूल्य दिया जाता है और विभिन्न सरकारी कार्यक्रमों तथा किसान उत्पादक संगठन (एफपीओ) के माध्यम से सहायता प्रदान की जाती है।
एचवाईवी बीजों के उपयोग के कारण उच्च उत्पादकता के साथ-साथ चावल, तिलहन, दलहन और पोषक-अनाज के अंतर्गत लाया गया विस्तारित क्षेत्र देश में खाद्यान्न उत्पादन में एक मील का पत्थर स्थापित करेगा। इससे दलहन में आत्मनिर्भरता आएगी, खाद्य तेलों का आयात कम होगा और मोटे अनाज की वैश्विक मांग को पूरा किया जा सकेगा। भारत के किसान देश को कृषि में आत्मनिर्भर बनाने में अहम भूमिका निभाएंगे।
(Source: PIB)