कोच्चि: 26 अप्रैल को विश्वभर में ‘बौद्धिक संपदा दिवस’ मनाया जाता है, इसके मद्देनजर हमे केरल का भौगोलिक संकेत (जीआई मानांकन) प्रेरणादायक उदाहरण देखने को मिलता है। भौगोलिक संकेत से स्थानीय निर्माताओं या किसानों को अपने उत्पादों के विपणन में लाभ पहुंचाता है, और कीमतें भी बेहतर होती है। इसके लिए कोचि के मरयूर गुड़ से बेहतर उदाहरण हो ही नहीं सकता है। आपको बता दे की, आई टैग हासिल करने के बाद, मरयूर गुड़ के फार्म-गेट की कीमत 50 रुपये प्रति किलोग्राम से बढ़कर 105 रुपये प्रति किलोग्राम हो गई है क्योंकि खरीदार अब उच्च श्रेणी से अच्छी गुणवत्ता, रासायनिक-मुक्त उत्पाद के लिए प्रीमियम का भुगतान करने को तैयार हैं।
मारिया हिल्स एग्रीकल्चरल डेवलपमेंट सोसाइटी के सचिव एस इंद्रजीत ने कहा, जीआई टैगिंग के बाद फिल्टर ग्रेड -1 मरयूर गुड़ के फार्म-गेट की कीमतें खुदरा खरीदारों के लिए 105 रुपये प्रति किलोग्राम और थोक विक्रेताओं के लिए कीमतें 90 रुपये प्रति किलोग्राम के आसपास हैं। जीआई टैगिंग से पहले, मरयूर गुड़ निर्माताओं ने केरल के पारंपरिक बाजार में अपने उत्पाद का विपणन करने में काफी कठिनाईयों का सामना किया है। खासकर तमिलनाडु से आने वाले सस्ती किस्म के गुड से प्रतिस्पर्धा करनी पड़ती थी। इससे पहले, मरयूर गुड़ और तमिलनाडु से आने वाले गुड के मूल्य में 10-30 रुपये प्रति किलोग्राम का अंतर था, लेकिन जीआई टैगिंग के बाद से यह बदल गया है। मरयूर एग्रीकल्चर प्रोड्यूसर कंपनी (मैपको) के सीईओ सेल्विन मारप्पन ने कहा, तमिलनाडु में गुड़ की कीमत अभी भी महज 45 रुपये प्रति किलो है।
मरयूर और कंठललोर में लगभग 950 गन्ना किसानों के घर हैं, जो पीढ़ियों से इस व्यवसाय में लगे हुए है। इन दो पंचायतों के बीच, वे 1,650 एकड़ में गन्ने की खेती होती हैं और इन गांवो के बीच स्थापित 150 गुड इकाइयों में उत्पादन होता हैं। मरयूर गुड़ इस बात का उदाहरण है कि, कैसे एक स्थानीय उत्पाद जीआई टैगिंग के माध्यम से प्रीमियम मूल्य प्राप्त कर सकता है।