सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्योगों के द्वारा शर्करा उद्योग के सह-उत्पादों एवं निष्प्रयोज्य सामाग्री का मूल्यवर्धित उत्पाद हेतु उपयोग” विषय पर किया गया राष्ट्रीय वेबिनार का आयोजन

कानपूर: राष्ट्रीय शर्करा संस्थान, कानपुर के द्वारा “आजादी का अमृत (Amrut) महोत्सव” के तत्वाधान मे “सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्योगों के द्वारा शर्करा उद्योग के सह-उत्पादों एवं निष्प्रयोज्य सामाग्री का मूल्यवर्धित उत्पाद हेतु उपयोग” विषय पर एक राष्ट्रीय वेबिनार का आयोजन किया गया। इस वेबिनार का उद्घाटन श्री सुधांशु पाण्डेय, सचिव (खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण) भारत सरकार के द्वारा किया गया। उन्होने इस अवसर पर चीनी कारखानों से निकले सह-उत्पाद जैसे बगास (गन्ने की खोई) और फिल्टर केक से डिस्पोज़ेबल क्रॉकरी, पार्टिकल बोर्ड एवं बायो-गैस जैसे मूल्यवर्धित उत्पादों को तैयार किये जाने पर विशेष बल दिया। उन्होने इस बात पर बल दिया कि डिस्टलरी के इन्सिनरेशन बॉयलर से निकले अपशिष्ट माने जानी वाली बॉयलर की राख़ को पोटाश समृद्ध उर्वरक बनाने के कारखानों मे उपयोग किया जाना चाहिए जो वर्तमान मे एक 100% आयातित उत्पाद है। उन्होने कहा कि इसके लिए सूक्ष्म और लघु इकाइयाँ या तो चीनी कारखाने स्वयं स्थापित करें अथवा संयुक्त उद्यम के रूप मे अन्य उद्यमियों के साथ मिलकर लगाएँ।

इस अवसर पर श्री सुबोध कुमार सिंह, संयुक्त सचिव (शर्करा) भारत सरकार ने MSME उपक्रमों को राष्ट्रीय शर्करा संस्थान, कानपुर के साथ संयुक्त रूप से कार्य करने तथा उद्यमियों से ऐसी इकाइयों की स्थापना का आह्वान किया, जिससे न केवल ग्रामीण क्षेत्रों मे समृद्धि लायी जा सकेगी अपितु इससे पर्याप्त रोजगार के अवसर भी उत्पन्न होंगे। उन्होने यह भी कहा कि डिस्पोज़ेबल क्रॉकरी, पार्टिकल बोर्ड और बायो-गैस पर्यावरण संरक्षण के दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण हैं।

राष्ट्रीय शर्करा संस्थान, कानपुर के निदेशक प्रो. नरेंद्र मोहन ने चीनी कारखानों के सह-उत्पाद अथवा अपशिष्ट पदार्थों के उपयोग से मूल्यवर्धित उत्पादों की प्राप्यता पर एक अत्यंत प्रभावशाली प्रस्तुति दी और कहा कि हम, कच्चे माल, वित्त की उपलब्धता और उपभोग को ध्यान मे रखते हुये इस प्रकार के उत्पादों के लिए कई मॉडल विकसित कर सकते हैं। उदाहरण स्वरूप फिल्टर-केक से बायो-गैस के लिए हम एक लघु मॉडल तैयार कर सकते हैं जो सामूहिक रसोई अथवा कई घरों मे खाना बनाने के लिए उपयोग मे लाया जा सकता है, वहीं यदि इसमे आवश्यक परिवर्तन लाया जाए तो यह वृहद पैमाने पर कम्प्रेस्ड बायो-मिथेन तैयार करने के काम आ सकता है जिसे वाहनों मे भी प्रयोग किया जा सकता है। इस अवसर पर उन्होने बगास से डिस्पोज़ेबल क्रॉकरी बनाने के विभिन्न मॉडल भी प्रस्तुत किए और कहा कि इस तरह के क्रॉकरी के बाजार के विकसित होने की प्रबल संभावना है; क्योंकि सामान्य उपभोक्ताओं मे सुरक्षित और स्वच्छ भोजन के प्रति जागरूकता उत्पन्न हो चुकी है।

कार्यक्रम के दौरान शर्करा अभियांत्रिकी के आचार्य प्रो. डी. स्वेन ने बगास (खोई) से पार्टिकल बोर्ड और इन्सिनरेशन बॉयलर के राख़ से पोटाश -समृद्ध उर्वरक बनाने के संबंध मे परियोजनाओं के लिए विस्तृत विवरण प्रस्तुत किया। उन्होने कहा कि इन दोनों उत्पादों का एक सुनिश्चित बाजार है और दिन प्रतिदिन स्थापित हो रहे डिस्टलरियों को देखते हुये कच्चे माल की आपूर्ति के संदर्भ मे आश्वस्त हुआ जा सकता है कि इन्सिनरेशन बॉयलर के राख़ की आपूर्ति पर्याप्त रूप से हो सकेगी। संस्थान के कनिष्ठ तकनीकी अधिकारी श्री महेंद्र कुमार यादव ने राष्ट्रीय शर्करा संस्थान, कानपुर के द्वारा नवीन तकनीकों से तैयार गुड़ के महत्व को बताते हुये कहा कि इसे पोषक तत्वों से समृद्ध (फोर्टिफाइड) किया गया है। इसके लिए स्वच्छ प्रसंस्करण तकनीक के साथ-साथ पर्यावरण एवं उपभोक्ता अनुकूल पैकिंग की गयी है जिससे इसकी उपयोग अवधि को बढ़ाने के साथ-साथ उपभोक्ताओं मे इसकी व्यापक स्वीकृति प्राप्त हो सके। उन्होने इस अवसर पर कई ऐसे विभिन्न परियोजनाओं को प्रस्तुत किया जिसमे गुड़ आधारित कन्फ़ेशनरी और बेकरी उत्पाद तैयार किए जा सकते हैं।

इस वेबिनार मे शर्करा उद्योग, आसवनियों और MSME से जुड़े बड़ी संख्या मे प्रतिनिधियों ने भाग लिया।

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