चीनी मिलों मे चीनी एवं अन्य उत्पादों के लिए निर्धारित प्रोटोकॉल के अनुसार गुणवत्ता नियंत्रण के लिए ‘गुणवत्ता नियंत्रक प्रयोगशाला’ की स्थापना आवश्यक: प्रो. नरेंद्र मोहन

कानपुर: राष्ट्रीय शर्करा संस्थान, कानपुर मे चीनी कारखानों की प्रयोगशालाओं मे कार्यरत कार्मिकों के लिए “गुड लैबोरेट्री प्रैक्टिसेज एंड क्वालिटी कंट्रोल” विषय पर एक ऑनलाइन प्रशिक्षण-सत्र का आयोजन किया गया। इस कार्यक्रम मे 150 कार्मिकों ने भाग लिया जिसमे नाइजीरिया के विभिन्न चीनी कारखानों के 06 कार्मिक भी शामिल हुये। संस्थान के निदेशक प्रो. नरेंद्र मोहन ने सत्र के प्रारम्भिक सम्बोधन मे यह कहा कि चीनी कारखानों मे चीनी एवं अन्य उत्पादों के लिए निर्धारित प्रोटोकॉल के अनुसार गुणवत्ता नियंत्रण के लिए ‘गुणवत्ता नियंत्रक प्रयोगशाला’ की स्थापना आवश्यक है, जिससे चीनी और अन्य उत्पादों का निर्धारित मानकों के अनुसार विश्लेषण हो सके, क्योंकि उद्योग जगत के साथ-साथ आम जन के प्रयोग मे आने वाले इन उत्पादों के लिए गुणवत्ता सुनिश्चित करना अत्यंत आवश्यक है। उन्होने यह भी कहा कि संस्थान के द्वारा ऐसी प्रयोगशालाओं के लिए गुणवत्ता प्रोटोकॉल का मानकीकरण किया गया है, जिसे भारतीय मानक ब्यूरो के साथ मिलकर जल्द ही जारी किया जाएगा।

सत्र के प्रारम्भिक व्याख्यान मे शर्करा प्रौद्योगिकीविद श्री महेंद्र प्रताप सिंह ने चीनी कारखानों के लिए आवश्यक “गुणवत्ता नियंत्रण व्यवस्था” का विस्तृत विवरण दिया। इस दौरान उनके द्वारा प्रयोगशाला-विश्लेषण व्यवस्था पर विशेष बल दिया गया। उन्होने कहा कि हम आज पारंपरिक व्यवस्था से आगे बढ़कर नवीनतम विश्लेषण प्रौद्योगिकी की मदद से अत्यंत सटीक विश्लेषण परिणाम को बारंबार प्राप्त कर सकते हैं। आधुनिक विश्लेषण पद्धतियाँ केवल शक्कर की मात्रा एवं शुद्धता तक ही सीमित नहीं होनी चाहिए अपितु उपयोग किए जाने वाले रसायनों का विश्लेषण एवं रस, सीरप तथा चीनी मे फॉस्फेट, कैल्सियम, डेक्सट्रान, स्टार्च, इन्वर्ट शुगर एवं कलर इत्यादि विश्लेषण मे शामिल होना चाहिए। उन्होने इस अवसर पर राष्ट्रीय शर्करा संस्थान, कानपुर द्वारा विकसित दैनिक एवं साप्ताहिक आंकड़ों की रिपोर्ट व्यवस्था का मानक प्रारूप भी प्रतिभागियों को बताया।

संस्थान के कनिष्ठ वैज्ञानिक अधिकारी डॉ. सुधान्शु मोहन ने इस अवसर पर प्रयोगशालाओं मे प्रयोग किए जाने वाले काँच के उपकरण और उनके अंशांकन व्यवस्था (कैलिब्रेशन) के ऊपर प्रकाश डाला क्योंकि इन उपकरणों का भी उच्च प्रयोगशाला प्रविधि (गुड लैबोरेट्री प्रैक्टिसेज ) मे काफी योगदान रहता है। उनके द्वारा यह बताया गया कि अधिकतर चीनी कारखानों और यहाँ तक कि विश्लेषण प्रयोगशालाओं मे मानक उपकरणों के प्रयोग नहीं किए जाने के कारण एक ही सैंपल (नमूने) के अलग-अलग परिणाम प्राप्त होते हैं। अतः उन्होने काँच के प्रयोगशाला उपकरणों तथा कुछ मुख्य प्रयोगशाला उपकरणों यथा स्पेक्ट्रोफ़ोटोमीटर, pH मीटर, इलेक्ट्रोनिक भारमापक एवं डिजिटल सैक्रिमीटर आदि के अंशांकन (कैलिब्रेशन) के बारे में विस्तारपूर्वक बताया।

मेसर्स मार्क लैब प्राइवेट लिमिटेड, पुणे की प्रबंध निदेशक एवं इन्टरनेशनल कमीशन फॉर यूनिफ़ोर्म मेथड्स ऑफ शुगर एनालिसिस की रेफरी डॉ. (श्रीमती) वसुधा केसकर ने इस बात पर बल दिया कि ‘रंग (कलर) आधारित गुणवत्ता नियंत्रण व्यवस्था’ मे शक्कर के रंग (कलर) के मान के अनुसार गुणवत्ता का नियंत्रण किया जाना चाहिए, जिससे बेहतर प्रसंस्करण क्षमता के साथ-साथ हमे अंततः उच्च गुणवत्ता के उत्पाद प्राप्त होते हैं। उन्होने यह भी कहा कि विश्व भर मे होने वाले चीनी के व्यापार मे चीनी की शुद्धता के अतिरिक्त उसके रंग (कलर) से ही उसके गुणवत्ता का निर्धारण किया जाता है। साथ ही साथ, उन्होने इस अवसर पर उनके द्वारा विकसित उपकरणों यथा “सुक्रोस्केन” एवं “एक्वास्केन” के बारे मे भी विस्तारपूर्वक बताया गया जिससे चीनी कारखानों मे उत्पादित चीनी मे शर्करा एवं जल की मात्रा का सटीक विश्लेषण किया जा सकता है।

सत्र का समापन कार्बनिक रसायन के सहायक आचार्य डॉ. वी. पी. श्रीवास्तव के द्वारा किया गया जिसमे उन्होने अपने सम्बोधन मे शक्कर की शुद्धता, स्टार्च, रंग (कलर), डेक्सट्रान एवं शक्कर मे सल्फर डाइऑक्साइड की मात्रा के विश्लेषण के लिए मानक पद्धतियों पर व्यापक रूप से प्रकाश डाला। वर्तमान मे अनेक चीनी कारखानों के द्वारा भारत मे कच्चे चीनी का उत्पादन निर्यात के उद्देश्य से किया जा रहा है, अतः उन्होने यह भी कहा कि आयातकों के आवश्यकता के अनुरूप चीनी के निर्धारित मानकों के अनुरूप विश्लेषण किया जाना अत्यंत महत्वपूर्ण है।

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