20 प्रतिशत एथेनॉल सम्मिश्रण लक्ष्य को पूरा करने के लिए मकई का रकबा बढ़ाने की जरूरत: विशेषज्ञ

नई दिल्ली: फेडरेशन ऑफ सीड इंडस्ट्री ऑफ इंडिया (FSII) में मकई पर समिति के प्रमुख और जेके एग्री जेनेटिक्स के सीईओ ज्ञानेंद्र शुक्ला ने कहा की, 2025 तक 20 प्रतिशत एथेनॉल सम्मिश्रण लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए, अनाज आधारित परियोजनाओं से एथेनॉल का आधा उत्पादन होना आवश्यक है। हालांकि, सिंगल क्रॉस हाइब्रिड किस्म की उपलब्धता में मौजूदा सीमाओं के कारण, क्षेत्रफल बढ़ाना सबसे व्यवहार्य समाधान है। उन्होंने कहा, मकई पर केवल एक व्यापक नीति ही मध्यम से लंबी अवधि में उत्पादकता बढ़ाने में मदद कर सकती है। मकई उपज में प्रति हेक्टेयर एक टन वृद्धि बहुत मायने रखती है क्योंकि देश में मक्का 10 मिलियन हेक्टेयर से अधिक में उगाया जाता है। शुक्ला ने कहा कि , यदि 3 टन प्रति हेक्टेयर की वर्तमान औसत उपज को 4 टन/हेक्टेयर तक बढ़ाया जाता है, तो उत्पादन में बहुत बढ़ोतरी होगी। शुक्ला ने दावा किया की, तकनीकी रूप से यह संभव है, लेकिन, इसे दो साल में हासिल करना थोड़ा मुश्किल है।

शुक्ला ने कहा, बेहतर कीमतों के कारण पिछले 10-15 वर्षों में मकई का क्षेत्रफल 6 मिलियन हेक्टेयर से बढ़कर 10 मिलियन हेक्टेयर हो गया है। उन्होंने कहा कि, चावल और गेहूं के समान, मकई की खरीद उस वक्त भी की जानी चाहिए जब उसका उत्पादन काफी बढ़ा हो। मकई एक ऐसी फसल है, जिसे कोई मूल्य समर्थन नहीं है। यदि एमएसपी के रूप में मूल्य समर्थन मिलता है, तो किसान जल्दी से मकई की ओर रुख करेंगे।

केंद्रीय कृषि सचिव मनोज आहूजा ने पिछले महीने कहा था कि, एथेनॉल और पोल्ट्री उद्योग की बढ़ती मांग को पूरा करने के लिए अगले पांच वर्षों में मकई का उत्पादन मौजूदा 33-34 मिलियन टन से बढ़ाकर 44-45 मिलियन टन करने की आवश्यकता है। दूसरे अग्रिम अनुमानों के अनुसार, 2022-23 फसल वर्ष (जुलाई-जून) में मक्का का उत्पादन पिछले वर्ष के 33.73 मिलियन टन से बढ़कर 34.61 मिलियन टन रहने का अनुमान है।

जहां तक बीज उद्योग का संबंध है, यह तेजी से उत्पादन बढ़ा सकता है और मांग को पूरा कर सकता है क्योंकि यह हमेशा एक सीजन आगे की योजना बनाता है।

इस महीने की शुरुआत में खाद्य सचिव संजीव चोपड़ा ने कहा था कि, गन्ने का उत्पादन बढ़ाने की एक सीमा है और एथेनॉल की आधी जरूरत अनाज आधारित परियोजनाओं से पूरी करनी होगी। उन्होंने आगे कहा कि चीनी की अपनी सीमाएं हैं, और अनाज आधारित संयंत्र, जो भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) द्वारा दी जाने वाली सब्सिडी वाले चावल का दोहन कर रहे हैं, एथेनॉल के लिए एक स्थायी फीडस्टॉक नहीं है। ऐसे में अब मक्का एकमात्र अच्छा विकल्प है।

वर्तमान में, भारत के पास 1,082 करोड़ लीटर एथेनॉल (निर्माणाधीन संयंत्रों सहित) का उत्पादन करने की क्षमता है। इस क्षमता में से 723 करोड़ लीटर मोलासेस आधारित इकाइयों से और 359 करोड़ लीटर अनाज आधारित संयंत्रों से आता है। जबकि 20 प्रतिशत सम्मिश्रण लक्ष्य को पूरा करने के लिए लगभग 1,016 करोड़ लीटर एथेनॉल का उत्पादन करने की आवश्यकता है, अन्य उपयोगों के लिए लगभग 334 करोड़ लीटर एथेनॉल की आवश्यकता होगी। इसके लिए लगभग 1,700 करोड़ लीटर एथेनॉल उत्पादन क्षमता की के प्लांट्स की आवश्यकता होगी, जब संयंत्र 80 प्रतिशत क्षमता के साथ काम करेंगे।

 

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