जानिये कैसे राष्ट्रीय शर्करा संस्थान चीनी मिलों को लेकर जा रहा है आत्मनिर्भरता की ओर

राष्ट्रीय शर्करा संस्थान, कानपुर एवं मेसर्स गुलजैग इन्डस्ट्रीज लिमिटेड, जोधपुर के मध्य आज एक अनुसंधान समझौते पर हस्ताक्षर किये गये जिसके अनुसार राष्ट्रीय शर्करा संस्थान, कानपुर गन्ने के रस की सफाई हेतु मेसर्स गुलजैग इन्डस्ट्रीज लिमिटेड के साथ एक मेटाबाइसल्फाइट आधारित उत्पाद को विकसित करके उसका प्रयोग गन्ने के रस की सफाई में करेगा। इसका प्रयोग चीनी मिलों में सल्फर डाइ ऑक्साइड जो सल्फर को जलाने से प्राप्त होती है, उसके स्थान पर किया जाएगा।

संस्थान के निदेशक प्रोफेसर नरेन्द्र मोहन ने बताया कि भारत की आधिकांश चीनी मिलों में चूने एवं सल्फर डाइआक्साइड के प्रयोग द्वारा गन्ने के रस की सफाई की जाती है। देश में चीनी मिलों द्वारा लगभग 3000 लाख टन गन्ने की पेराई से प्राप्त रस को साफ करने हेतु सल्फर बहुतायत में आयात किया जाता है। अतः सल्फर के स्थान पर किसी अन्य रसायन का उपयोग जो कि देश में उपलब्ध हो, चीनी मिलों की आत्मनिर्भरता की ओर कदम होगा। उन्होंने बताया कि देश में प्रतिवर्ष लगभग 1.80 लाख टन सल्फर की खपत चीनी मिलों में होती है।इस प्रकार के स्वदेशी उत्पाद से सल्फर के आयात में होने वाली कमी से विदेशी मुद्रा की बचत भी होगी।

संस्थान के शर्करा तकनीक अनुभाग के सहायक आचार्य श्री अशोक गर्ग ने बताया कि सल्फर डाइऑक्साइड के प्रयोग से जहां मशीनरी में जंग लगने की समस्या रहती है वहीं कुछ मात्रा में गैस के वायुमण्डल में पहुंचने के कारण वायु प्रदूषण भी होता है। अतः इस प्रकार के उत्पाद के विकास से जहां मशीनरी में जंग लगने के कारण, रख-रखाव व मरम्मत पर व्यय कम होगा एवं ब्रेकडाउन में कमी आयेगी वहीं चीनी में सल्फर की मात्रा में भी कमी सम्भावित है।
संस्थान द्वारा यह परीक्षण शर्करा तकनीकी अनुभाग में प्रयोगशाला स्तर एवं संस्थान की प्रायोगिक चीनी मिल में किया जाएगा। यह परीक्षण जनवरी 2022 में प्रारम्भ हो जाएगा।

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