नई दिल्ली : गन्ना किसान उत्तर प्रदेश की सियासत में बड़ा स्थान रखते हैं. कैराना में पिछले हफ्ते हुए लोकसभा उपचुनाव में गन्ना किसानों का भुगतान एक बड़ा मुद्दा बना था. जानकार बताते हैं कि बीजेपी की हार की वजह भी गन्ना किसानों का भुगतान नहीं होना बना था. इस घटना से सबक लेते हुए सरकार गन्ना किसानों के जल्द से जल्द भुगतान के लिए चीनी मिलों को राहत पैकेज की घोषणी कर सकती है.
किसानों का गन्ना बकाया 22,000 करोड़ रुपये से अधिक हो जाने से चिंतित सरकार नकदी की तंगी से जूझ रही चीनी मिलों के लिए 8,000 करोड़ रुपये से अधिक का राहत पैकेज घोषित कर सकती है ताकि किसानों का भुगतान जल्द से जल्द किया जा सके. सूत्र बताते हैं कि गन्ना किसानों को राहत देने तथा उनके बकाया भुगतान के लिए केंद्र सरकार 8,000 करोड़ से ज्यादा का व्यापक पैकेज लाने वाला है. गन्ना किसानों का बकाया 20,000 करोड़ रुपये से ज्यादा हो गया है. माना जा रहा है कि सरकार का यह कदम 2019 के आम चुनावों में किसानों को आकर्षित करने के उद्देश्य से लिया गया है.
इस पैकेज में 30 लाख मीट्रिक टन गन्ने के भंडारण किया जाएगा जिससे रुपया सीधे गन्ना किसानों के खातों में हस्तांतरित हो. ऐसे भंडारण की सुविधा होने से गन्ना किसानों के बकाए का भुगतान होगा तथा मांग और आपूर्ति का संतुलन बनाने से चीनी की आपूर्ति सुनिश्चित होगी. भंडारण के निर्माण की कुल अनुमानित कीमत 1,200 करोड़ रुपये है. पैकेज में देश में एथनॉल की क्षमता बढ़ाने की 4,400 करोड़ रुपये से ज्यादा की महत्वपूर्ण योजना है. माना जा रहा है कि सरकार ने चीनी की न्यूनतम कीमत 29 रुपये प्रति किलोग्राम तय कर दी है जिससे गन्ना किसानों के बकाए का भुगतान किया जा सके.
पिछले महीने सरकार ने गन्ना किसानों के लिए 1500 करोड़ रुपये की उत्पादन से संबद्ध सब्सिडी की घोषणा की थी ताकि गन्ना बकाये के भुगतान के लिए चीनी मिलों की मदद की जा सके.
यूपी में बकाया है 1,300 करोड़
चीनी मिलें गन्ना उत्पादकों का भुगतान करने में असमर्थ हैं क्योंकि चीनी उत्पादन वर्ष 2017-18 (अक्टूबर-सितंबर) में अब तक 3.16 करोड़ टन के रिकॉर्ड उत्पादन के बाद चीनी कीमतों में तेज गिरावट आने से उनकी वित्तीय हालत कमजोर बनी हुई है. देश के सबसे बड़ी गन्ना उत्पादक राज्य उत्तर प्रदेश में ही किसानों का अकेले 12,000 करोड़ रुपये से अधिक का गन्ना बकाया है.
खाद्य मंत्रालय ने 30 लाख टन चीनी के बफर स्टॉक बनाने का प्रस्ताव दिया है. चीनी स्टॉक को बनाये रखने की लागत सरकार द्वारा वहन की जाएगी, जिसके कारण राजकोष पर करीब 1,300 करोड़ रुपये का बोझ आने का अनुमान है. बफर स्टॉक बनाने के अलावा, खाद्य मंत्रालय ने 30 रुपये प्रति किलो का न्यूनतम एक्स-मिल बिक्री मूल्य तय करने, मासिक चीनी को जारी करने की व्यव्स्था को पुन: लागू करने और प्रत्येक मिल के लिए कोटा तय करके मिलों पर स्टॉक रखने की सीमा तय करने का प्रस्ताव किया है.
संकटग्रस्त चीनी उद्योग की मदद के लिए पेट्रोलियम मंत्रालय ने इथेनॉल की नई क्षमता के विस्तार और निर्माण के लिए चीनी मिलों को 4,500 करोड़ रुपये पर छह फीसदी ब्याज सब्सिडी का प्रस्ताव दिया है. यह योजना चीनी मिलों को ऋण चुकाने के लिए पांच साल का समय प्रदान करता है. सूत्रों ने बताया कि केवल ब्याज सब्सिडी के कारण सरकार को 1,200 करोड़ रुपये का बोझ वहन करना होगा.
पेट्रोलियम मंत्रालय इथेनॉल मूल्य बढ़ाने के बारे में भी सोच रहा है ताकि चीनी मिल जल्द से जल्द किसानों को भुगतान कर सकें. वर्तमान में चीनी की औसत एक्स-मिल कीमत 25.60 से 26.22 रुपये प्रति किलो की सीमा में है, जो उनकी उत्पादन लागत से कम है. केंद्र ने चीनी आयात शुल्क को दोगुना कर 100 फीसदी तक बढ़ा दिया है तथा घरेलू कीमतों में गिरावट को रोकने के लिए निर्यात शुल्क को खत्म कर दिया है. उसने चीनी मिलों से 20 लाख टन चीनी निर्यात करने को भी कहा है.