इस कारण निजी चीनी मिलों ने सरकार के खिलाफ अदालत का दरवाजा खटखटाया…

यह न्यूज़ सुनने के लिए इमेज के निचे के बटन को दबाये

मुंबई : चीनी मंडी

केंद्र सरकार की सॉफ्ट लोन (नरम ऋण) योजना का विस्तार करने में विफल रहने के लिए महाराष्ट्र सरकार के खिलाफ निजी चीनी मिलों ने कानूनी कार्रवाई के लिए अदालत का दरवाजा खटखटाया है।

वेस्ट इंडियन शुगर मिल्स एसोसिएशन (विस्मा) के अध्यक्ष बी. बी. थोम्ब्रे ने कहा कि, 2014-15 में, केंद्र सरकार चीनी क्षेत्र के लिए एक नरम ऋण योजना लेकर आई थी, जिस समय चीनी की कीमतों में भारी गिरावट आई थी और चीनी मिलें मुसीबत में थी। उस वक़्त चीनी मिलें एफआरपी भुगतान नही कर पाई थी और 2,000 करोड़ रुपये की सॉफ्ट लोन स्कीम से उन्हें अपने गन्ने का बकाया चुकाने में मदद मिली। इस योजना के तहत मिलों को पांच साल की अवधि के लिए 10 प्रतिशत ब्याज पर ऋण मिला था। केंद्र सरकार को पहले वर्ष के लिए ब्याज का भुगतान करना था और राज्य सरकार को अगले चार वर्षों का ब्याज भुगतान करना था।

हालांकि, थोम्ब्रे ने कहा कि, राज्य सरकार ने निजी मिलों को योजना का लाभ देने से इनकार कर दिया है। उन्होंने कहा, सरकार ने ऐसा करते हुए 2010 के बॉम्बे हाई कोर्ट के फैसले का आधार लिया है। यह फैसला नई चीनी मिलों की स्थापना से संबंधित था और इसे ब्याज अधीनता योजना से नहीं जोड़ा जा सकता था। इसके अलावा, मूल सरकारी प्रस्ताव में योजना के लिए निजी और सहकारी मिलों को शामिल किया गया है। अगर निजी मिलों को योजना से हटा दिया गया था, तो मूल जीआर का उल्लेख क्यों किया गया? इसी लिए मामले को बॉम्बे हाईकोर्ट में चुनौती दी गई है।

इस बीच, खुले बाजार में चीनी की मांग बढ़ने से कीमतों में थोड़ा सुधार हुआ है। ठोम्बरे ने कहा कि, बाजार की यह स्थिती व्यापारीयों द्वारा स्टॉक को खाली करने के कारण है। चीनी की एक्स मिल कीमत अभी भी 3,100 रुपये प्रति क्विंटल के स्तर पर है, जो कि सरकार द्वारा घोषित न्यूनतम बिक्री मूल्य है। ठोम्बरे ने यह भी कहा कि, एमएसपी के निचे चीनी बिक्री की समस्या भी अभी नियंत्रण में है, जिससे इस क्षेत्र को कुछ हद तक मदद मिली है।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here