राज्य सरकार चीनी मिलों को ब्याज देने के लिए कर सकती हैं बाध्य

मुरादाबाद : गन्ना नियंत्रण अधिनियम, 1966 के तहत 14 दिनों के भीतर गन्ने के भुगतान का प्रावधान है। यदि तय अवधि में मिलें भुगतान करने में नाकाम रहती हैं, तो उन्हें किसानों को 15 प्रतिशत ब्याज के साथ बकाया मूल्य चुकाना होता है। इस कानून को लागू करने की जिम्मेदारी राज्य सरकारों की होती है, इसलिए अगर बकाया भुगतान करने में चीनी मिलें नाकाम रहती है, तो फिर राज्य सरकार ही चीनी मिलों को ब्याज देने के लिए बाध्य कर सकती हैं। अमर उजाला में प्रकाशित खबर के मुताबिक, भाकियू नेता द्वारा भेजे गए एक पत्र पर खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण मंत्रालय ने दिए जवाब में इस बात की पुष्टी हुई है।

भाकियू नेता के प्रधानमंत्री को लिखे पत्र पर केंद्र सरकार के खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण मंत्रालय ने जवाब भेजा है कि इस एक्ट को लागू करने की शक्तियां राज्य सरकारों में निहित हैं। भारतीय किसान यूनियन (भाकियू) के चौधरी ऋषिपाल सिंह प्रधानमंत्री को पत्र भेजकर कहा था कि, जब सरकार किसानों को बकाया गन्ना मूल्य पर ब्याज नहीं दिला सकती तो उसे किसानों से क्रेडिट कार्ड पर ब्याज वसूलने का भी कोई हक नहीं है। इस पत्र के जवाब में भारत सरकार के उपभोक्ता मामले, खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण मंत्रालय के अवर सचिव नितेश भसीन ने कहा है कि 14 दिन में भुगतान नहीं होने पर गन्ना किसानों को 15 प्रतिशत वार्षिक ब्याज देने का नियम गन्ना एक्ट में है। लेकिन इन प्रावधानों को लागू करने की शक्तियां राज्य सरकारों और केंद्र शासित प्रदेशों के प्रशासन में निहित हैं। अवर सचिव ने कहा है कि, केंद्र सरकार समय – समय पर राज्य सरकारों को निर्देश देती रहती है कि वह गन्ना मूल्य का भुगतान समय से कराए और देरी करने वाली मिलों पर सख्त कार्रवाई करे। भाकियू नेता का कहना है कि, बकाया गन्ना मूल्य पर ब्याज हासिल करने के लिए आंदोलन करेंगे।

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