अपरिवर्तित एफआरपी : कहीं खुशी, कहीं गम

नई दिल्ली : चीनी मंडी

केंद्र सरकार का 2019-20 सीज़न के लिए गन्ने के उचित और पारिश्रमिक मूल्य (एफआरपी) को अपरिवर्तित रखने का फैसला चीनी उद्योग के लिए एक बड़ी राहत के रूप में आया है, जो कम कीमतों और अधिशेष चीनी की समस्या से परेशान है। हालांकि, पूर्व सांसद और किसान नेता राजू शेट्टी ने सरकार के इस कदम को किसानों के साथ विश्वासघात कहा है। अपरिवर्तित एफआरपी के फैसले से ‘कहीं खुशी, कहीं गम’ का माहोल बना हुआ है।

प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में आर्थिक मामलों की कैबिनेट समिति (सीसीई) ने चीनी क्षेत्र पर दो बड़े फैसले लिए हैं। मिल स्तर पर सरकार द्वारा 40 लाख टन चीनी के बफर स्टॉक और  इस स्टॉक के लिए 1,674 करोड़ रुपये मिलों को मिलेंगे, जिससे मिलों को किसानों को बकाया भुगतान करने में मदद मिलेगी।दूसरा निर्णय एफआरपी से संबंधित है और सीसीई ने इसे 2018-19 के समान रखने का निर्णय लिया।

पिछले साल, न्यूनतम एफआरपी को 10 प्रतिशत की बेस रिकवरी दर के साथ 275 रुपये प्रति क्विंटल रखा गया था। 2009-10 के बाद यह पहली बार होगा जब सरकार ने एफआरपी नहीं बढाई है। चीनी उद्योग ने सरकार के इस दोनों कदमों का स्वागत किया है। वेस्ट इंडियन शुगर मिल्स एसोसिएशन के अध्यक्ष बी. बी. थोम्बरे ने बताया कि, पिछले एक साल में वे एफआरपी को बढ़ाने के लिए सरकार के साथ पैरवी नहीं कर रहे हैं, क्योंकि यह पहलेसे ही “असामान्य रूप से उच्च” था। उन्होंने कहा, “हम कृषि लागत और मूल्य आयोग के अध्यक्ष से मिले थे और बताया कि कैसे एफआरपी बढ़ने से सेक्टर पूरी तरह से अस्थिर हो जाएगा।”  अपरिवर्तित एफआरपी मिलों के लिए एक बड़ी राहत के रूप में आई है, जो रिकॉर्ड अनसोल्ड इन्वेंट्री और कम पूंजी से संघर्ष कर रहे है।

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