हरियाणा की चीनी मिलों को वित्तीय स्थिति सुधारने में मिलेगी मदद

देश भर में कई चीनी मिलों की आधुनिकीकरण पर काम हो रहा है, जिससे ना सिर्फ उत्पादन अच्छा होगा बल्कि आर्थिक लाभ भी बढ़ेगा। इसी क्रम में राष्ट्रीय शर्करा संस्थान भी चीनी मिलों की समृद्धि के लिए काम कर रहा है। हालही में राष्ट्रीय शर्करा संस्थान ने कहा की वे हरियाणा की चीनी मिलों की वित्तीय स्थिति सुधारने मे मदद करेंगे। यह निर्णय राष्ट्रीय शर्करा संस्थान एवं हरियाणा कोआपरेटिव शुगर फेडरेशन के मध्य निदेशक स्तर पर हुई वीडियो कॉन्फ़्रेंसिंग के दौरान लिया गया।

राष्ट्रीय शर्करा संस्थान के निदेशक प्रो नरेंद्र मोहन ने बताया की हरियाणा फेडरेशन की कई चीनी मिलों की स्थिति चिंताजनक है। इन चीनी मिलों का कैपेसिटी यूटिलाइजेशन एवं रिकवरी देश के एवं हरियाणा के औसत से भी बहुत कम है। निजी चीनी मिलों की तुलना मे कोआपरेटिव चीनी मिलों की एफिशिएंसी कम है। इसको देखते हुए राष्ट्रीय शर्करा संस्थान इन चीनी मिलों के पिछले चीनी सत्र 2019-20 के प्रोसेसिंग के आंकड़ों की जांच कर एक विस्तृत रिपोर्ट हरियाणा फेडरेशन को देगा जिसमे इनमे किस प्रकार सुधार किया जाय उसके बारे मे एक रोड मैप होगा। हम फील्ड से फैक्ट्री तक सुधार हेतु चरणबद्ध तरीके से लागू करने के लिए यह रोड मैप देंगे, प्रो मोहन ने कहा।

बैठक मे हरियाणा कोआपरेटिव शुगर फेडरेशन के प्रबंध निदेशक श्री शक्ति सिंह ने संस्थान से फेडरेशन की तीन चीनी मिलों मे गुड़ की इकाइयों की स्थापना एवं फ़िल्टर केक से बायो-गैस बनाने हेतु भी सहयोग माँगा। संस्थान के निदेशक ने गुड़ बनाने की एक कम लागत की गुड़ परियोजना की विस्तृत रूपरेखा प्रस्तुत की जिसमे उच्च स्तरीय फिल्ट्रेशन के बाद गन्ने के जूस को वनस्पतियों के रस से साफ़ कर स्टेनलेस स्टील की हीट एक्सचेंजर्स मे गाढ़ा किया जाएगा जिसके द्वारा बेहतर गुडवत्ता का गुड़ बिना केमिकल के प्रयोग द्वारा स्वच्छ प्रक्रिया द्वारा तैयार हो सकेगा। गुड़ को मोल्ड्स मे ढालकर 250 ग्राम, 500 ग्राम एवं 1 किलो के केक मे बनाया जायेगा। संस्थान के प्रो डॉ आशुतोष बाजपेयी ने बताया की गुड़ की विभिन्न क्वालिटी अलग अलग इम्युनिटी बूस्टर्स यथा हल्दी, अदरक, अलसी के बीज आदि के मिश्रण से बनाई जाएगी और गुड़ की शेल्फ लाइफ बढ़ने हेतु पैकेजिंग पर विशेष ध्यान दिया जाएगा।

इसके अतिरिक्त संस्थान, हरियाणा कोआपरेटिव शुगर फेडरेशन को गन्ने के रस को साफ़ करने से प्राप्त मैली “फ़िल्टर केक” से पायलट प्लांट स्केल पर बायो-गैस बनाने हेतु भी तकनिकी सहायता देगा। संस्थान की प्रो सीमा परोहा ने बताया की लगभग 25 किलो फ़िल्टर केक से एक किलो बायो-गैस प्राप्त होती है अतः वर्त्तमान मे फ़िल्टर केक के मूल्य जो मात्रा 25 पैसे प्रति किलो है यह मुनाफे का सौदा हो सकता है। साथ ही बायो-गैस एक स्वच्छ एवं हरित ऊर्जा होगी जिसे फैक्ट्री मे अनेक जगहों पर इस्तेमाल किया जा सकेगा।

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