वैश्विक बाजारों में चीनी की कीमतें बढ़ने के आसार : प्रकाश नाइकनवरे

पुणे: चीनी मंडी

वसंतदादा शुगर इंस्टीट्यूट की वार्षिक बैठक में नेशनल फेडरेशन ऑफ को-ऑपरेटिव शुगर फैक्टरीज लिमिटेड (NFCSF) के प्रबंध निदेशक प्रकाश नाइकनवरे ने कहा कि, दो साल के रिकॉर्ड चीनी उत्पादन के बाद इस साल वैश्विक बाजारों में ‘डिमांड-सप्लाय’ में 61 लाख टन चीनी की कमी आई है, जिससे अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर चीनी की कीमते बढ़ रही है। पिछले साल चीनी का कुल उत्पादन 331 लाख टन की जगह इस साल 263 लाख टन तक घटने की उम्मीद है। जिसमे महाराष्ट्र के साथ साथ कर्नाटक और गुजरात में भी चीनी उत्पादन पिछले साल की तुलना में कम होने का अनुमान है। उत्पादन घटने से मिलों पर से अधिशेष चीनी का दबाव कुछ हद तक कम होगा और चीनी की कीमतों में भी इजाफा होने की संभावना बढ़ेगी। चीनी सीजन खत्म होते समय सितंबर 2020 में चीनी अधिशेष 100 लाख टन के भीतर रहने की उम्मीद है, जो की पिछले सीजन में 144 लाख टन था। इसका सीधा असर चीनी कीमतों पर देखा जा रहा है, क्योंकि चीनी की ‘एक्स मिल’ कीमते 3100 रूपये प्रति क्विंटल से उपर टिकी है, और बढ़ रही रही है।

नाइकनवरे ने कहा की, 25 दिसंबर 2019 तक देशभर की 419 मिलों ने पेराई शुरू कर दी है, जबकि पिछले साल इस समय 500 मिलें शुरू थी, और चीनी उत्पादन 63 लाख टन हुआ है, जो पिछले साल इस वक़्त तक 93 लाख टन हुआ था। चीनी उत्पादन में हुई गिरावट का सीधा असर कीमतों पर हो सकता है।लेकिन रिकवरी में गिरावट चिंताजनक है, पिछले सीजन में 10.27 की जगह इस साल अबतक 9.81 प्रतिशत रिकवरी हुई है, जिससे चीनी उत्पादन में गिरावट देखि जा रही है। महाराष्ट्र में पिछले सीजन में 107 लाख टन उत्पादन हुआ था, और इस साल उत्पादन 55 लाख टन तक सिमित रहने की संभावना है। इतना ही नही कर्नाटक का उत्पादन 10-12 लाख टन और गुजरात में भी चीनी उत्पादन कम होने का अनुमान है। अगर आने वाले महीनों में चीनी निर्यात कोटा को सही तरह से लागू किया जाता है, तो फिर चीनी कीमते और बढ़ सकती है। इस साल महाराष्ट्र का क्रशिंग सीजन केवल 90 दिनों तक ही चल सकता है, लेकिन उत्तर प्रदेश का सीजन 150 दिनों तक होगा। चीनी निर्यात में उत्तर प्रदेश की तुलना में महाराष्ट्र काफी पीछे है। 24 लाख टन के अनुबंध में केवल उत्तर प्रदेश के 15-16 लाख टन के अनुबंध है। महाराष्ट्र के मिलों को भी निर्यात के लिए आगे आने की जरूरत है, क्योंकि अगर निर्यात बढती है तो फिर घरेलू बाजारों में भी चीनी की कीमतों में सुधार होता है।

केंद्र सरकार ने न्यूनतम चीनी बिक्री मूल्य (एमएसपी) 3100 रुपये प्रति क्‍विंटल तय किया है। चीनी की तीन श्रेणियां (ग्रेड) है, जिसमें छोटे ग्रेड (एस), मध्यम ग्रेड (एम) और बड़े ग्रेड (एल) कि चीनी शामिल हैं। राष्ट्रीय सहकारी चीनी मिल महासंघ ने, चीनी कि श्रेणियों के अनुसार, न्यूनतम बिक्री दर निर्धारित करने के लिए केंद्र सरकार के साथ एक संयुक्त चर्चा की मांग की है। अगर ऐसा होता है, तो चीनी की कीमतें 1.5 रुपये से दो रुपये प्रति किलोग्राम तक बढ़ जाएंगी।नाइकनवरे ने कहा कि, उपभोक्ता मूल्य नियंत्रण आदेश 1966 में एक विसंगति है। केंद्रीय खाद्य राज्य मंत्री रावसाहेब दानवे और खाद्य सचिव रविकांत से उसी में बदलाव की मांग का उल्लेख करते हुए, नाइकनवरे ने आगे कहा कि, केंद्र ने चीनी उद्योग को गन्ने के लिए एफआरपी का भुगतान करने के लिए एक सॉफ्ट लोन (ऋण) दिया है। उन ऋणों को चुकाने के लिए अगले पांच वर्षों के लिए ऋण का पुनर्गठन करने कि मांग की गई है। नाबार्ड के महाप्रबंधक जी.जी. मेमन के साथ सकारात्मक चर्चा हुई है और उन्होंने मिलों के ऋणों का पुनर्गठन करने के लिए जल्द ही स्टेट को-ऑपरेटिव बैंक के साथ एक संयुक्त बैठक आयोजित करने पर सहमति व्यक्त की है।

उन्होंने यह भी कहा कि, चीनी निर्यात दर और चीनी गिरवी ऋण दर के बीच विसंगतियों के कारण चीनी मिलें वित्तीय कठिनाईयों का सामना कर रही हैं। केंद्र सरकार से चीनी मिलों को ईंधन, कंपनियों को इथेनॉल की आपूर्ति, चीनी निर्यात सब्सिडी और आरक्षित सब्सिडी की मांग की है। इसके अलावा, मिलों द्वारा उत्पादित इथेनॉल की आपूर्ति को ईंधन कंपनियों के डिपो में जाना पड़ता है, इससे परिवहन की लागत बढ़ जाती है। इसलिए यह भी मांग की गई है कि, यदि सरकार द्वारा चीनी मिलों के स्वयं के पेट्रोल पंपों पर इथेनॉल मिश्रण की अनुमति दी जाती है, तो मिलें परिवहन लागत पर बचत करेंगे।

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