शुगर टेक्नोलॉजिस्ट की तकनीकी समिति चीनी उद्योग के लिए चाहती है ‘दोहरी मूल्य निर्धारण प्रणाली’

यह न्यूज़ सुनने के लिए इमेज के निचे के बटन को दबाये

मुंबई : चीनीमंडी

चीनी उद्योग में चीनी की कीमतें हमेशा एक महत्वपूर्ण मुद्दा रही हैं, और इस अस्थिर उद्योग में हितैशी हमेशा इस बात पर दुविधा में रहे हैं कि, कैसे अधिशेष चीनी से निपटा जाए। समय-समय पर सरकार द्वारा विभिन्न उपाय जैसे की न्यूनतम बिक्री मूल्य में वृद्धि, नरम ऋण आदि के बाद चीनी उद्योग को कुछ हद तक राहत देने में मदद मिली है, लेकिन यह कदम चीनी उद्योग को स्थिर रास्तें पर लाने के लिए काफी नही है।

द शुगर टेक्नोलॉजिस्ट एसोसिएशन ऑफ इंडिया की तकनीकी समिति का मानना है कि, चीनी उद्योग को हमेशा के लिए संकट से बाहर निकलने और अत्यधिक चीनी स्टॉक को चैनलाइज करने के लिए चीनी के लिए ‘दोहरी मूल्य निर्धारण प्रणाली’ की आवश्यकता है।

ChiniMandi.com के साथ बात करते हुए, एसोसिएशन के अध्यक्ष, संजय अवस्थी ने कहा, व्यक्तिगत उपभोक्ता केवल 30-35 प्रतिशत चीनी का उपभोग करते हैं, और शेष 65-70 प्रतिशत का उपयोग पेय, मिठाई निर्माताओं, कन्फेक्शनरी, आदि जैसे थोक उपभोक्ताओं द्वारा किया जाता है। ‘एसटीएआई’ तकनीकी समिति के विचारों के अनुसार, व्यक्तिगत उपभोक्ताओं के लिए चीनी का मूल्य 36 रूपये किलोग्राम और थोक उपभोक्ताओं के लिए 50 रूपये किलोग्राम होना चाहिए। थोक उपभोक्ता चीनी से भारी मुनाफा कमाते हैं, जो उनका मुख्य घटक है।

गैस सिलेंडर का एक उदाहरण देते हुए अवस्थी ने कहा, गैस सिलेंडर के मामले में, केंद्र सरकार दोहरी मूल्य निर्धारण नीति का पालन कर रही है। घरेलू उपभोक्ताओं को 14.2 किलोग्राम का सिलेंडर Rs.706.80 (Rs.49.72 प्रति किलो) मिलता है, जबकि वाणिज्यिक उपभोक्ता 19 किलो के सिलेंडर के लिए Rs.1305.67 (68.72 रुपये प्रति किलो) का भुगतान करता है। रसोई गैस की तुलना में औद्योगिक गैस 38 प्रतिशत महंगी है।

इस साल भी, भारत पिछले साल की तरह ही 32.5 लाख मीट्रिक टन के रिकॉर्ड चीनी उत्पादन के साथ चीनी सीजन 2018-19 बंद हो जाएगा। पिछले वर्ष के 10.5 लाख मीट्रिक टन इन्वेंटरी के साथ, चीनी उद्योग को एक बहुत बड़े चीनी अधिशेष से निपटना होगा।

अवस्थी ने दोहरे मूल्य निर्धारण के अलावा निम्नलिखित उपायों की सलाह दी हैं…

सख्त निर्यात: केंद्र सरकार द्वारा कम से कम 5 मिलियन टन चीनी निर्यात की सख्ती होनी चाहिए।

बफर स्टॉक में वृद्धि: बफर स्टॉक को 5 मिलियन टन तक बढ़ाना होगा, हालांकि, मिलों को उनकी तरलता को बढ़ाने के लिए चीनी स्टॉक को 3600 रूपये क्विंटल का भुगतान किया जाना चाहिए।

इथेनॉल का निर्माण: मिलों द्वारा इथेनॉल के निर्माण के लिए कम से कम 100 दिन गन्ने के रस का इस्तेमाल करना चाहिए। सरकार को एसडीएफ से मिलों के लिए इस प्रयास में सहायता देनी चाहिए। जब तक कि हम अपने घरेलू उपभोग के स्तर और बफर स्टॉक के 5 मिलियन टन के करीब नहीं आ जाते, तब तक चीनी मिलों को गन्ने के रस को इथेनॉल में बदल देना चाहिए।

अवस्थी ने कहा, आगामी मानसून के मौसम पर अलग-अलग विचार रहे हैं। भारत मौसम विभाग ने जून-सितम्बर में वर्षा 96 प्रतिशत रहने का अनुमान लगाया है जबकि कुछ निजी मौसम एजेंसियों ने औसतन 93 प्रतिशत बारिश होने की उम्मीद की हैं। कुछ अंतरराष्ट्रीय मौसम एजेंसियां भारत में मानसून के सामान्य होने का अनुमान लगा रही हैं।

मानसून पर टिकी नजरें…

उन्होंने आगे कहा की, देश के प्रमुख हिस्सों में अप्रैल-जून के बीच बुआई होती है। इसके चलते हमें अगले दो महीनों में स्पष्ट तस्वीर मिल सकती है। महाराष्ट्र और अन्य दक्षिणी राज्यों के कई हिस्सों में पिछले 2-3 वर्षों में पर्याप्त वर्षा नहीं हुई, इसलिए इस वर्ष मानसून पर बहुत कुछ निर्भर करेगा। स्पष्ट रूप से इस स्तर पर किसी भी पूर्वानुमान पर बोलना समय से पहले है, लेकिन मन की भावना यह कहती है कि इस वर्ष परिस्थीती अच्छी हो या बुरी चीनी उत्पादन 2 मिलियन मेट्रिक टन कम या जादा हो सकता है।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here