पुणे: बालाघाट क्षेत्र के गांवों में ऐसे कई उदाहरण सामने आए हैं कि, गन्ना श्रमिकों के बच्चों ने शिक्षा से अपने परिवार की तकदीर बदल डाली है। शिक्षा से गरीबी के अंधकार को हमेशा के लिए को दूर किया जा सकता है, इसका परिचय गन्ना श्रमिकों के बच्चों अपने कठोर मेहनत और लगन से सफलता हासिल करके दिया। ‘कोयतामुक्ति’ का यह पैटर्न केज तालुका के छोटे से गांव एकुरका (जिला बीड) में देखा जा सकता है।
अग्रोवन में प्रकाशित ‘कोयतामुक्ति पैटर्न’ के स्पेशल रिपोर्ट के अनुसार, एकुरका गांव की आबादी 1865 है. इस गांव में करीब 75 से 80 फीसदी परिवार गन्ना मजदूरी के लिए जाते है, लेकिन शिक्षा ने कई परिवारों को गन्ना कटाई के काम से हमेशा के लिए मुक्त किया। वर्तमान में इस गांव में 37 डॉक्टर, एमपीएससी के माध्यम से 12 अधिकारी, 31 पूर्व सैनिक, 16 शिक्षक, 6 प्रोफेसर, 10 पुलिसकर्मी, 11 नर्सें कार्यरत हैं।इनमें से अधिकांश की पृष्ठभूमि गन्ना श्रमिकों की है। एकुरका गांव ने शिक्षा के माध्यम से ‘कोयता मुक्ति का पैटर्न’ अपनाया है।
‘कोयतामुक्ति पैटर्न’ का एक तरीका जल संरक्षण कार्य करके जल स्रोतों, जलाशयों का निर्माण करके नकदी फसल पैटर्न बनाकर आर्थिक और सामाजिक विकास लाना है। दूसरा रास्ता शिक्षा के माध्यम से विभिन्न क्षेत्रों में अवसरों का लाभ उठाकर गरीबी से छुटकारा पाना है। ये दोनों पैटर्न बालाघाट क्षेत्र के कई गांवों में इस्तेमाल किये जा रहे है।
हाल ही में NEET परीक्षा का रिजल्ट घोषित किया गया, इसमें गांव से कम से कम 7 बच्चों का विभिन्न प्रकार की मेडिकल शिक्षा के लिए चयन किया जाएगा। ग्रामीणों की ओर से इन बच्चों के लिए सम्मान समारोह आयोजित किया गया। इस कार्यक्रम से यह जानकारी सामने आई है।
एकुरका लगभग 95 प्रतिशत शुष्क भूमि वाला गाँव है, इसलिए इस गांव में खेती बहुत किफायती नहीं है।जलाशयों एवं स्रोतों की उपलब्धता कम है। जल संरक्षण कार्य पर ध्यान न देने के कारण भूजल स्तर 700 से 800 फीट तक गिर गया है। इसका मतलब है कि, अधिकांश परिवारों को अपनी आजीविका के लिए गन्ना काटने वाले मजदूरों पर निर्भर रहना पड़ता है क्योंकि इस गांव में कृषि क्षेत्र में काफी गिरावट आई है। अधिकांश परिवारों की स्थिति बहुत नाजुक और कर्ज में डूबी हुई है। इस स्थिति से बाहर निकलने का एकमात्र रास्ता शिक्षा है। ये है इस गांव की हकीकत, और इस गांव ने शिक्षा के माध्यम से प्रगति का पाठ पढ़ाया है।