इथेनॉल की कीमत बढ़ने से क्या चीनी उद्योग की सब समस्या हल होगी ?

नई दिल्ली : चीनी मंडी

देश में गन्ने और चीनी के बम्पर उत्पादन से एक तरफ ख़ुशी लहर दौड़ रही है, लेकिन दूसरी ओर घरेलू बाजार में चीनी की कम मांग और विश्व बाजार में लगातार फिसलती कीमतों ने चीनी उद्योग के साथ साथ सरकार के सामने अनेक चुनौतीयां खड़ी कर दी है। इसके चलते सरकार ने चीनी उद्योग के लिए राहत पेकेज का भी ऐलान किया, चीनी निर्यात कोटा आवंटित किया गया, और तो और बफर स्टॉक भी लागु कर दिया, फिर भी चीनी उद्योग आर्थिक संकट से नहीं उभरा। किसानों का बकाया भुगतान १० हजार करोड़ के करीब पहुँच गया ।

आनेवाले सीजन में जो अब कुछ ही दिनों में शुरू होने जा रहा है, फिर एक बार चीनी उत्पादन रिकॉर्ड स्तर छूने का अनुमान लगाया जा रहा है, ऐसे में चीनी उद्योग और सरकार दोनों की राहें और कठीन हो जाती, इसीलिए सरकार ने गन्ने से चीनी, इथेनॉल और बिजली उत्पादन के लिए बढ़ावा देने के लिए ठोस कदम उठाये है ।

सरकार ने बुधवार को 2018-2019 चीनी मौसम के लिए इथेनॉल की कीमतों में वृद्धि को मंजूरी दे दी। इससे साफ पता चलता है कि केंद्र सरकार इथेनॉल उत्पादन और क्षमता वृद्धि में निवेश को प्रोत्साहित करना चाहता है। लेकिन चीनी उद्योग अभी भी सावधान है, क्योंकि उनका मानना है की इथेनॉल उत्पादन प्रोत्साहन चीनी और इथेनॉल उत्पादन में दरार पैदा कर सकता है, जो चीनी के अस्थिर कीमत का खतरा बढ़ा सकते हैं।

सबसे पहले लेते है चीनी उद्योग की स्थिति का जायजा…

घरेलू और आंतरराष्ट्रीय बाजार में चीनी की कीमतें गिरने के बावजूद किसान गन्ने की कीमतों में वृद्धि चाहते हैं। केंद्र सरकार किसानों की इस इच्छा का न्यूनतम बिक्री मूल्य के साथ समर्थन करती है, जो कभी नहीं गिरती है। चीनी मिले नुकसान होने पर किसानों का भुगतान नहीं करते हैं। ऐसे समय में सरकार किसानों का बकाया भुगतान करने के लिए मिलों को राहत पेकेज का ऐलान कर देती है। लेकिन सरकार चीनी की कीमतों में वृद्धि नहीं करती क्योंकि उन्हें किसानों के साथ साथ उपभोक्ता जो मतदाता भी है, उन्हें भी सरकार नाराज नही करना चाहती।

सी-भारी गुड़ से उत्पादित इथेनॉल प्रति लीटर 43.70 रूपये…

मौजूदा सीजन में उत्पादन में वृद्धि देखी गई है। अक्टूबर से शुरू होने वाला नया सीजन भी बम्पर फसल देखने की उम्मीद है। इसने बहुत सारी समस्याएं और बकाया भुगतान की समस्या पैदा की है। इस समस्या का एक समाधान गन्ने से सीधा इथेनॉल उत्पादन है। सरकार ने चीनी उद्योग से इथेनॉल क्षमता बढ़ाने में निवेश करने और तेल विपणन कंपनियों द्वारा भुगतान की जाने वाली लाभकारी कीमतों को निर्धारित करने के लिए कहा है। सरकारद्वारा बुधवार की गई घोषणा चीनी मिलों को चीनी से इथेनॉल उत्पादन के लिए प्रोत्साहित करके एक कदम आगे जाती है। सी-भारी गुड़ (मोलासिस) से उत्पादित इथेनॉल प्रति लीटर 43.70 रूपये पर बिकेगा ।

चीनी उत्पादन 20% कम है, जबकि इथेनॉल उत्पादन दोगुना होगा…

बी-भारी गुड़ के मामले में, कीमत 11.3% बढ़कर 52.40 रुपये प्रति लीटर हो गई है। सी-भारी गुड (मोलासिस) की तुलना में, चीनी उत्पादन 20% कम है, जबकि इथेनॉल उत्पादन दोगुना हो जाता है। चीनी गन्ना के रस से सीधे उत्पादित इथेनॉल के लिए, खरीद मूल्य 25% से ₹ 59.10 रुपये प्रति लीटर किया गया है। 100% रस उत्पादित इथेनॉल के लिए जादा दर दिया गया है, क्योंकि यह प्रक्रिया बी और सी श्रेणियों में चीनी और इथेनॉल के मिश्रण के बजाय केवल सीधे इथेनॉल उत्पन्न करती है। यह सरकार के लिए एक बड़ा कदम माना जाता है, क्योंकि यह चीनी मिलों को गन्ने से केवल इथेनॉल का उत्पादन करने की अनुमति देता है। लेकिन मिलों को इसलिए डिस्टिलरी क्षमता में निवेश करना होगा और बलरामपुर चीनी मिल्स लिमिटेड के प्रबंधन के अनुसार, इथेनॉल उत्पादन की प्रक्रिया को ध्यान में रखते हुए प्रदूषण नियंत्रण, भंडारण और परिवहन में निवेश की भी आवश्यकता होगी। इसके चलते कंपनी खुद ही एक नई आसवन में ₹ 207 करोड़ निवेश कर रही है।

इथेनॉल मिश्रण ईंधन आयात को कम करेगा, लेकिन…

किसी विशेष उद्योग को प्रोत्साहन देने में कुछ भी गलत नहीं है। वास्तव में, इथेनॉल मिश्रण भी ईंधन आयात बिल को कम करता है। अगर सरकार गन्ने की कीमत बढ़ने और गिरने में किसी भी हस्तक्षेप से बचती है, तो फसल भी वही करेगा जिसको फायदा होगा और बाजार खुद ही संतुलित होगा। यह देखते हुए इथेनॉल को प्रोत्साहित करना भी सरकार का अकृत्रिम उपाय मन जाना चाहिए, क्योंकि जब ईंधन की कीमतें गिरती हैं, तो तेल कंपनियां इथेनॉल के लिए कम भुगतान करना चाहती हैं। ब्राजील में इथेनॉल का रिकॉर्ड उत्पादन ईंधन की कीमतें गिरने का एक कारण हो सकती है, तब क्या सरकार जैसे चीनी की कीमते गिरने पर राहत पकेज देती है, वैसे ही इथेनॉल को राहत पकेज दे पायेगी । यदि इथेनॉल की कीमतों में गिरावट आती है, तो चीनी मिलों को उनके मार्जिन कम हो जायेगा क्योंकि उनका चीनी गन्ना खरीद मूल्य तय किया जाता है और अगर सरकार तेल कंपनियों को एक ही इथेनॉल मूल्य का भुगतान करने के लिए मजबूर करती है, तो वे भी पीड़ित होंगे।

गन्ना उत्पादन कम होगा, तब क्या…

इसके अलावा, खराब मौसम गन्ना फसल को नुकसान पहुंचा सकता है। जब ऐसा होता है, तो चीनी उत्पादन में कमी आएगी और चीनी की कीमतों में वृद्धि होगी। अगर कंपनियां 100% गन्ना के रस को इथेनॉल में बदलना जारी रखती हैं, तो चीनी आपूर्ति की स्थिति तंग हो जाएगी और कीमतों में वृद्धि होगी। दरअसल मिलें भी यही चाहते हैं। लेकिन सरकार इसे पसंद नहीं करेगी। अब भी सरकार चीनी की कीमतों को कम रखने के लिए मिलों को न्यूनतम मात्रा में चीनी स्टॉक जारी करने के लिए निर्देश देता है।

चीनी उद्योग की समस्याओं से निपटने के लिए एक सरल रास्ता है, गन्ने की कीमत को चीनी, इथेनॉल और बिजली के निर्माण के साथ जोड़ना चाहिए, जिससे चीनी मिलें पैसा कमाती है, जिसमे किसान प्रॉफिट शेयरिंग का हिस्सा बन सके, फिर चीनी या अन्य उत्पादों की कीमत कुछ भी क्यू न हो।लेकिन सरकार ऐसा नही चाहती, वो तो एक ही समय पर किसान और उपभोका दोनों का हित चाहती है और उससे ही चीनी उद्योग को आर्थिक संकट से बाहर निकलने में मुश्किल हो रही है ।

SOURCEChiniMandi

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