क्या महाराष्ट्र में चीनी की जगह इथेनॉल का विकल्प कारगर साबित होगा?

मुंबई: चीनी मंडी

देश में एक बड़ी लॉबी पेट्रोल में 20 प्रतिशत इथेनॉल का उपयोग करने के विकल्प का समर्थन कर रही है। चर्चा यही चल रही है कि, इथेनॉल पेट्रोल से सस्ता होगा, भारत के कच्चे तेल पर निर्भरता को कम करेगा और गन्ना किसानों को अतिरिक्त पैसा मिलेगा। लेकिन क्या इथेनॉल उत्पादन वास्तव में इतना फायदेमंद है? इसके बारे में सोचने की जरूरत है।

देश में चीनी अधिशेष और आगामी सीजन के रिकॉर्ड उत्पादन की संभावना के चलते इथेनॉल उत्पादन का विकल्प सामने आया है। लेकिन मूल रूप से, गन्ना एक जादा पानी खींचने वाली फसल है। उत्तर प्रदेश जैसे पानी वाले राज्य में गन्ना की खेती ठीक समझी जा सकती है, लेकिन क्या यह पाणी और सिंचाई की असामनता देखि जानेवाले महाराष्ट्र में इथेनॉल के लिए गन्ना खेती उपयुक्त है? यह देखना चाहिए।

इथेनॉल का उत्पादन चीनी उद्योग को कितना लाभदायक बनाता है, इस बारे में अभी भी संदेह बना हुआ है । महाराष्ट्र में कुल फसल उपज क्षेत्र के केवल 20 प्रतिशत क्षेत्र ही सिंचाई के अधीन है। इसकी तुलना में, मध्य प्रदेश का 67 प्रतिशत क्षेत्र सिंचाई के अधिन है। इसको देखते हुए महाराष्ट्र में खेती चिंता का विषय बनी है। इसलिए, महाराष्ट्र में गन्ने की खेती को इथेनॉल उत्पादन में बदलना एक खतरा है।

ब्राजील जैसे देश में इथेनॉल का ईंधन के रूप में उपयोग करना संभव है, क्योंकि वहाँ पानी की उपलब्धता बहुत बड़ी है और जनसंख्या की घनत्व (प्रति किलोमीटर की जनसंख्या) कम है। ब्राजील में, जनसंख्या घनत्व 25 है और भारत में यह 412 है, यह अंतर बहुत कुछ स्पष्ट करता है। चीनी मिलों ने हमेशा किसानों का समर्थन किया है, सरकार से उनके वित्तीय और राजनीतिक समर्थन के कारण, वे किसानों को अच्छा भुगतान कर सकते हैं।

आगे हम प्रमुख 5 कारक देखेंगे की क्यों इथेनॉल उपयुक्त नहीं है…

इथेनॉल की कीमत: अगर इथेनॉल को पेट्रोल की जगह प्रतिस्थापित किया जाता है, तो दोनों दरें एक ही स्तर पर होनी चाहिए। इथेनॉल दरों की तुलना अंतरराष्ट्रीय पेट्रोल की कीमतों से की जानी चाहिए। इथेनॉल पर पेट्रोल की तरह कर लगाया जाता है। जब गन्ना फसल के लिए मुफ्त दिया जाना वाला पाणी की भी अगर उचित कीमत लगाई जाती है, तभी पेट्रोल और इथेनॉल की सही कीमत तुलना की जाएगी ।

ऑटोमोबाइल प्रौद्योगिकी: ऑटोमोबाइल प्रौद्योगिकी लगातार बदल रही है। सरकार हाइड्रोकार्बन और इलेक्ट्रिक-आधारित वाहनों का उपयोग करने की कोशिश कर रही है। ऐसी परिस्थितियां ऑटोमोबाइल कंपनियों के लिए इथेनॉल के वाहनों में अपनी तकनीक को बदलने के लिए कहना गलत हो सकता हैं।

इथेनॉल मीथेन: पेट्रोल के साथ इथेनॉल मिश्रण से देश के आयात पर बोझ कम करेगा। चीनी उद्योग के साथ शेष कृषि उद्योग को कृषि-वेस्ट से मीथेन का उत्पादन करना चाहिए। जिसका उपयोग सीएनजी गैस के लिए किया जाता है। यदि ऐसा होता है तो भारत 18 लाख करोड़ रुपये के मीथेन का उत्पादन कर सकता है। वर्ष 2017-18 के दौरान, भारत ने 5.89 अरब करोड़ पेट्रोलियम उत्पादों का आयात किया है। दूसरी तरफ, भारत में 18 लाख करोड़ रुपये के मीथेन का उत्पादन करने की क्षमता है। इसका मतलब है, वाहनों में इथेनॉल की बजाय, भारत को मीथेन का इस्तेमाल करने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए।

अल्कोहोल उत्पादन: अल्कोहोल उत्पादन के लिए इथेनॉल का भी उपयोग किया जाता है। औद्योगिक अल्कोहोल और शराब के बीच मूल्य अंतर 1: 10 है। यदि, शराब पर लगाये जानेवाले कर की बात करतें है, तो अनुपात 1: 100 तक चला जाता है। इसलिए, सभी राज्य सरकार शराब को जीएसटी के तहत आने से रोकने की कोशिश कर रही है। औद्योगिक अल्कोहोल को शराब के लिए बढ़ावा देना चीनी मिलों को घटे का सौदा साबित हो सकता है।

लाभ और हानि: कानपुर के राष्ट्रीय चीनी संस्थान के निदेशक नरेंद्र मोहन के अनुसार, शराब से राजस्व अलग रखा जाता है। लाभ का निजीकरण और हानि का सामाजिककरण का यह एक बड़ा उदाहरण है। बगेस का उपयोग मीथेन उत्पादन के लिए किया जा सकता है। चीनी उद्योग, हालांकि, इससे बहुत कम राजस्व दिखाता है और इसका उपयोग जलाने के लिए किया जाता है। गन्ने के कई हिस्सों को निजी इस्तेमाल के लिए रखा जाता है। यह स्पष्ट है कि वर्तमान इथेनॉल विकल्प विशेष रूप से किसानों के लिए देश के लिए फायदेमंद नहीं है।

SOURCEChiniMandi

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