आगामी शुक्रवार वह दिन होगा जो सदियों तक याद रखा जाएगा। इस दिन दुनिया सदी का सबसे लंबा चंद्र ग्रहण देखेगी जो एक घंटा 45 मिनट तक रहेगा। यह दिन खगोलशास्त्रियों के लिए भी खास होने जा रहा है। 27 जुलाई की मध्यरात्रि में लगने जा रहे इस खगोलीय घटना में करीब चार घंटे तक चन्द्रमा इस ग्रहण के प्रभाव में रहेगा। इस दिन मंगल भी पृथ्वी के काफी करीब आने वाला है। चंद्र ग्रहण को लेकर पूरे देश के खगोलशास्त्री काफी उत्साहित हैं।
यह एक ऐसी घटना है जब दुनियाभर के स्टार गैजर को रक्त जैसे लाल चंद्रमा को देखने का मौका मिलेगा। यह स्थिति तब उत्पन्न होती है जब चंद्रमा पूरी तरह से ग्रहण में होता है और सूरज की रोशनी के कारण लाल दिखाई देने लगता है।
अस्ट्रेलियन नेशनल यूनिवर्सिटी के रिसर्च स्कूल ऑफ एस्ट्रोनोमी और एस्ट्रेफिजिक्स के एस्ट्रोनोमर ब्रैड टकर ने बताया कि चंद्रमा हमेशा सूर्य और पृथ्वी के साथ पूर्ण संरेखण में नहीं होता है इसलिए हमें हर चंद्र चक्र में हमें चंद्र ग्रहण देखने को नहीं मिलता है। उन्होंने आगे कहा कि हम देखते हैं कि सूर्य चंद्रमा 35000 किमी दूर रहने के बाद भी सूर्योदय और सूर्यास्त के समय चंद्रमा की सतह को रोशनी देता है। अगर आप चंद्रमा पर हैं तो आपको सूर्य ग्रहण देखने का मौका मिलता है जब पृथ्वी सूर्य के सीध में आता है और वह पूरी तरह से ढक जाता है।
यह चंद्र ग्रहण इसलिए भी खास है क्योंकि यह पूरी दुनिया में दिखाई देगा सिर्फ उत्तरी अमेरिका को छोड़कर। लेकिन यह सबसे खूबसूरत और अच्छा दिखेगा अस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड, यूरोप, अफ्रीका और एशिया में। इस वर्ष यह दूसरा मौका होगा जब ग्रहण के समय ब्लड मून दिखेगा।
क्यों दिखता है रक्त जैसा लाल चांद
खगोलशास्त्री बताते हैं कि चंद्र ग्रहण को ‘ब्लड मून’ कहे जाने की वजह इसका रंग होता है जो इस दौरान पूरी तरह से बदल जाता है। दरअसल, चंद्रग्रहण के समय जब सूरज और चंद्रमा के बीच पृथ्वी आती है तो सूरज की किरण रुक जाती है। पृथ्वी के वातावरण की वजह से रोशनी मुड़कर चांद पर पड़ती है और इस वजह से यह लाल नजर आता है। जब पूर्ण चंद्रग्रहण होता है तभी ब्लड मून होता है।
इतना लंबा ग्रहण करीब 150 साल बाद दिखाई देने जा रहा है। यह आरंभ रात 11 बजकर 54 मिनट पर होगा इसका मध्यकाल रात 1 बजकर 54 मिनट पर होगा और 28 जुलाई को सुबह 3 बजकर 49 मिनट पर ग्रहण का समाप्त होगा। इस तरह ग्रहण की कुल अवधि 3 घंटे 55 मिनट की होगी।