मोदी सरकार के चार साल में आय तो बढ़ी, पर अब गन्ना भुगतान रुला रहा

योगेंद्र योगी, अमरोहा: राज्य और केंद्र सरकार किसान हित में बड़े-बड़े फैसले ले रही है। इसका असर भी दिखने लगा है। यहां की मुख्य फसल गन्ने की उत्पादन क्षमता में लगातार वृद्धि हो रही है। बहुत से किसान तो उतनी ही लागत में गन्ने का दोगुना उत्पादन प्राप्त कर भी रहे हैं। इससे किसानों की आय भी बढ़ रही है। लेकिन उत्पादन बढ़ने से चीनी मिल मालिक अब फिर से मनमानी पर उतर आए हैं। करीब सवा लाख किसानों का चीनी मिल मालिकों पर करीब 325 करोड़ रुपया बकाया है। वैसे तो केंद्र सरकार ने वर्ष 2022 तक किसानों की आय दोगुनी करने का एलान इस साल के वित्तीय बजट में एलान किया है।

प्रदेश सरकार भी लघु और सीमांत किसानों का एक लाख रुपये तक का कर्ज माफ कर चुकी है, ताकि छोटे किसानों की आर्थिक स्थिति में सुधार हो। चूंकि यहां की मुख्य फसल गन्ना है और किसानों के लिए यह नकदी फसल है। सरकारों की नीतियों का ही असर है कि जनपद में हर साल औसत गन्ना उत्पादन की दर बढ़ती जा रही है।

वर्ष 2015-16 में गन्ने की औसत उपज 710 कुंटल प्रति हेक्टेयर थी, जो 2016-17 में बढ़कर 740 ¨क्वटल प्रति हेक्टेयर हो गयी। मौजूदा पेराई सत्र अभी चल रहा है। चंदनपुर व धनौरा की चीनी मिले बंद हो चुकी हैं, लेकिन सरकारी नियंत्रण वाली हसनपुर चीनी मिल पेराई कर रही है लेकिन इस बार गन्ने की उत्पादन क्षमता में जबरदस्त उछाल आने की संभावना है।

अनुमान के मुताबिक इस बार गन्ने की औसत उपज 800 कुंटल प्रति हेक्टेयर को पार कर जाएगी। यहां तक तो सबकुछ ठीक है। गन्ने की उत्पादन क्षमता बढ़ने के साथ ही किसानों की आय में वृद्धि हुई है। बहुत से किसानों ने तो गन्ने की विशेष प्रजाति सीओ-0238 और नवीन वैज्ञानिक विधि से खेती करके गन्ने की दोगुना उपज पैदा की है। यानि कि बहुत से किसानों ने तो 100 से 125 कुंटल प्रति बीघा तक गन्ने की उपज ली है लेकिन उत्पादन क्षमता बढ़ने से चीनी मिल मालिकों ने भुगतान को हाथ खड़े कर दिये हैं।

अब भी करीब 325 करोड़ रुपये जनपद के सवा लाख किसानों के बकाया हैं। अच्छी उपज के बाद भी किसान परेशान है, उसे गन्ना मूल्य भुगतान की ¨चता सता रही है। हो सकता है, किसानों को इसके लिए आंदोलन भी करना पड़े। पिछले चार साल में गन्ना भुगतान को लेकर इतने बुरे हालात कभी नहीं बने। भले ही किसानों को किस्तों में गन्ना भुगतान किया गया हो। वहीं जिला गन्ना अधिकारी विजय बहादुर ¨सह कहते हैं कि बकाया गन्ना मूल्य भुगतान को चीनी मिलों पर शिकंजा कसा जा रहा है। उन्हें नोटिस जारी किए गए हैं।

योजनाओं का नहीं होता ठीक से प्रचार-प्रसार

अमरोहा: किसानों के कल्याण की केंद्र और राज्य सरकार ने विभिन्न योजनाएं चला रखी हैं, लेकिन प्रचार-प्रसार के अभाव में बहुत से जरूरतमंद किसानों को सरकारी योजनाओं का लाभ ही नहीं मिल पाता। बीहड़ एवं बंजर भूमि के सुधार की महत्वाकांक्षी पंडित दीनदयाल उपाध्याय किसान समृद्धि विकास योजना का भी यही हाल है। बजट के अभाव में ये योजना पिछले वित्तीय वर्ष में पिछड़ गयी है। 125 लाख रुपये के सापेक्ष केवल 47 लाख रुपये ही भूमि सुधार को मिल पाए। हालांकि जनपद के सभी 940 राजस्व गांवों में वर्मी कम्पोस्ट इकाईयों की स्थापना को सरकार की ओर से 56.40 लाख रुपये का बजट स्वीकृत किया गया था, पूरा बजट प्राप्त हो चुका है और वर्मी कम्पोस्ट इकाईयों के निर्माण का काम भी अंतिम चरण में हैं। इससे जैविक खेती को जरूर बढ़ावा मिलेगा। ¨सचाई योजनाओं में सुधार को मिले 60 लाख किए सरेंडर

अमरोहा: केंद्र सरकार ने ¨सचाई योजना में सुधार को सरकार ने उद्यान विभाग को 73.45 लाख रुपये आवंटित किये थे। लेकिन विभाग केवल 13 लाख रुपया ही इसमें खर्च कर पाया। बाकी बचे 60 लाख रुपये उद्यान विभाग ने शासन को भेज दिये। जबकि विभाग चाहता तो इससे लघु और सीमांत किसानों की ¨सचाई संबंधी दिक्कतों को दूर किया जा सकता था। बिना प्रचार प्रसार के किसानों को योजनाओं का पता ही नहीं चला और विभाग ने भी लाभार्थी न मिलने का बहाना बनाकर बजट सरेंडर कर दिया। — केंद्र व राज्य सरकार की विभिन्न कल्याणकारी योजनाओं से लघु और सीमांत किसानों को लाभांवित किया जा रहा है। ताकि उनका जीवन स्तर ऊंचा उठ सके। करीब 50 हजार किसानों का एक लाख रुपये तक कर्ज भी माफ किया जा चुका है। विभिन्न अनुदानित योजनाओं का लाभ भी किसानों का दिया जा रहा है। सरकार की मंशा 2022 तक किसानों की आय दोगुना करने की है और उसको लेकर विभिन्न योजनाओं का क्रियान्वयन किया जा रहा है।

राजीव कुमार ¨सह, जिला कृषि अधिकारी, अमरोहा।

— सरकार ने उत्पादन लागत से 50 फीसद अधिक लाभांश शामिल करते हुए समर्थन मूल्य घोषित करने की बात कही थी। लेकिन अब तक उस पर अमल नहीं हुआ। सरकार ने जो एलान किए थे उन पर अमल होता तो किसानों की स्थिति दूसरी होती। जिस प्रकार से वर्ष 2017-18 में कृषि लागत एवं मूल्य आयोग ने गन्ने की उत्पादन लागत 255 रुपये निर्धारित की थी। नई नीति के हिसाब से इसमें 50 फीसद लाभ जोड़ लिया जाए तो गन्ने का समर्थन मूल्य 387.50 पैसे मिलना चाहिए था, जो नहीं मिला।

– चौ.शिवराज ¨सह, अध्यक्ष

छोटे एवं सीमांत किसान बचाओ संघर्ष समिति। -सरकार ने जो किसानों की आय दोगुना करने का वायदा किया था वह हकीकत से कोसों दूर है। उत्पादन लागत में 50 फीसद लाभांश शामिल करते हुए फसलों के समर्थन मूल्य घोषित करने की नीति का भी पालन नहीं हुआ। डीजल की कीमत आसमान छू रही हैं, जिसके चलते खेती घाटे का सौदा साबित होती जा रही है। सरकार को सबसे पहले डीजल की कीमतों पर अंकुश लगाना चाहिए।

– चौ.वीरेंद्र ¨सह, मंडल अध्यक्ष, भाकियू असली। – केंद्र की भाजपा सरकार किसान विरोधी है। न तो स्वामीनाथन आयोग की रिपोर्ट के आधार पर फसलों का समर्थन मूल्य घोषित किया जा रहा। न कृषि आयोग का ही अब तक गठन किया। किसानों से जुड़े अलग-अलग 18 विभागों को एक किया जाए। फसलों के बाजार और समर्थन मूल्य में भी भारी अंतर है, इसे जब तक दूर नहीं किया जाएगा किसानों का भला नहीं हो सकता।

– चौ.उम्मेद ¨सह, वरिष्ठ प्रदेश उपाध्यक्ष, भाकियू।

– एक ओर तो सरकार कहती है कि वह 2022 तक किसानों की आय दोगुना करेगी, लेकिन बजट में किसानों के लिए कोई बड़ी घोषणा नहीं की। आर्थिक विकास दर में कृषि की 27 फीसद भागीदारी है, लेकिन बजट में खेती किसानी के लिए केवल 4 से 5 फीसद बजट का ही एलान किया गया है। सरकार को चाहिए कि वह किसानों की फसलों को खरीदे और उनकी भंडारण की उचित व्यवस्था करे। तभी किसान का भला हो सकता है। किसानों की आय में जो भी वृद्धि हो रही है वह कृषि वैज्ञानिकों की मेहनत का परिणाम है न कि सरकार का।

– चौ.दिवाकर ¨सह, राष्ट्रीय उपाध्यक्ष, भाकियू भानु।

SOURCEJagran

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