चीनी की एक्स-मिल मूल्य और उत्पादन लागत के अंतर को भरने की जरुरत: ISMA

नई दिल्ली: इंडियन शुगर मिल्स एसोसिएशन (ISMA) की 88वीं वार्षिक आम बैठक (एजीएम) में बोलते हुए, अध्यक्ष आदित्य झुनझुनवाला ने चीनी के दाम बढ़ाने पर जोर दिया। झुनझुनवाला ने कहा कि, सरकार द्वारा न्यूनतम चीनी मूल्य 29 रुपये प्रति किलो तय किया था और उस समय चीनी उद्योग के लिए नीति बहुत फायदेमंद थी, घरेलू कीमतें बहु-स्तर पर कम थीं। इसके अलावा, एमएसपी को 2019 में ऊपर की ओर संशोधित किया गया था और इसे 31 रुपये प्रति किलो तय किया गया था। हालाँकि,लगभग 3 साल हो गए हैं तब से MSP उसी दर पर स्थिर है। सरकार ने एफआरपी में वृद्धि की है, लेकिन चीनी के दाम में कोई खास बढ़ोतरी नहीं हुई है। वर्तमान में, औसत एक्स-मिल कीमतें लगभग रु. 34-35 रुपये प्रति किलो है, जो उत्पादन लागत से कम है। चीनी मिलों के लिए पर्याप्त तरलता और किसानों को समय पर भुगतान करने के लिए चीनी का एक्स-मिल मूल्य और उत्पादन लागत के अंतर को भरने की जरुरत है।

झुनझुनवाला ने कहा, गन्ने की कीमत निर्धारित करने के लिए एक तर्कसंगत और वैज्ञानिक सूत्र की कमी चीनी उद्योग के चिंता का विषय है। गन्ना मूल्य और चीनी मूल्य के बीच संबंध का अभाव गन्ना मूल्य को अवहनीय बना रहा है। 2019 से, सरकार गन्ने का एफआरपी बढ़ा रही है, जो लगभग 30 रुपये प्रति क्विंटल बढ़ गया है। इसके अलावा, कुछ राज्य ऐसे हैं जो एफआरपी से ऊपर गन्ने की कीमत तय करते हैं। झुनझुनवाला ने कहा, गन्ना मूल्य का ऐसा निर्णय चीनी मिलों पर बोझ डालता है। हमें लगता है कि चीनी उद्योग को भविष्य के लिए तैयार करने और वैश्विक प्रतिस्पर्धा का मुकाबला करने के लिए, बाजार की ताकतों के आधार पर गन्ना मूल्य निर्धारण करने का समय आ गया है। हमें लगता है कि सरकार को किसानों के हितों की रक्षा के लिए मूल्य स्थिरीकरण कोष (पीएसएफ) के साथ-साथ रेवेन्यू शेयरिंग फॉर्मूला (आरएसएफ) को अपनाना चाहिए।

उन्होंने कहा, पहली बार, देश ने 10% एथेनॉल सम्मिश्रण हासिल किया है, और चीनी निर्यात 111 लाख टन को पार कर गया है। भारतीय चीनी उद्योग ने ऊर्जा की जरूरतों को पूरा करने में देश को आत्मनिर्भर बनाने, कीमती विदेशी मुद्रा बचाने और सबसे महत्वपूर्ण यह सुनिश्चित करने के लिए कि अगली पीढ़ी प्रदूषण मुक्त वातावरण में सांस ले सके इसलिए माननीय प्रधानमंत्री के सपने के साथ खुद को जोड़ लिया है।

चीनी उद्योग गन्ने की किस्म में सुधार के लिए निवेश बढ़ा रहा है। ISMA का मानना है कि, उपलब्ध उत्पादों और एसोसिएशन द्वारा एकत्र किए गए आंकड़ों के आधार पर गन्ने की पैदावार काफी हद तक बढ़ सकती है। ISMA उच्च गन्ना उपज किस्मों को विकसित करने के लिए गन्ना अनुसंधान संस्थानों के साथ मिलकर काम कर रहा है, जो सूखा प्रतिरोधी, कीट प्रतिरोधी हैं, और मानसून की किसी भी अनियमितता का सामना कर सकते हैं। दक्षिण भारत के लिए कुछ खास फसलों की किस्मों की पहचान करने में कुछ उल्लेखनीय प्रगति हो रही है जो कम पानी में भी अच्छी उपज दे सकती हैं। इसके अलावा, इस्मा गन्ने की पैदावार में सुधार और पानी की खपत को कम करने के लिए विकसित किए जा रहे कुछ उत्पादों और विधियों का मूल्यांकन कर रहा है।

इस्मा हरित ऊर्जा हब की स्थापना पर सक्रिय रूप से विचार कर रहा है, जिसमें इथेनॉल, बायो सीएनजी, बायो एनर्जी चार्जिंग स्टेशन शामिल हैं। शुरुआत में इसे फ़ैक्टरी ज़ोन में स्थापित किया जा सकता है, और बाद में अन्य क्षेत्रों में भी इसका विस्तार किया जा सकता है। इस्मा को लगता है कि ऐसा हब सभी हरित ऊर्जा के लिए वन-स्टॉप होगा और इसमें धीरे-धीरे ईंधन विकल्पों को जीवाश्म से हरित ईंधन में बदलने की क्षमता है।

तरलता की चुनौतियों पर बोलते हुए, झुनझुनवाला ने कहा, यह एक निर्विवाद सत्य है कि उद्योग को अपना संचालन के लिए नकदी की आवश्यकता होती है। एक कृषि-उद्योग होने के नाते जिसमें 50 मिलियन गन्ना किसान और उनका परिवार हम पर निर्भर है, यह और भी महत्वपूर्ण हो जाता है कि हमारे पास अपने कार्यों को चलाने और किसानों को समय पर गन्ने का भुगतान करने के लिए पर्याप्त पैसा हो।हालांकि, अभी भी कुछ नीतियां हैं जिन्हें सरकार के समर्थन की आवश्यकता है। हमें लगता है कि इन नीतियों पर दोबारा गौर किया जाना चाहिए और वैश्विक गतिशीलता के अनुसार संशोधित किया जाना चाहिए।

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